Book Title: Varni Abhinandan Granth
Author(s): Khushalchandra Gorawala
Publisher: Varni Hirak Jayanti Mahotsav Samiti

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Page 6
________________ समर्पण जिस स्वयंबुद्धने सत्यकी शोध, सतत साधना, सार्वजनीन सेवा, परदुःख कातरता तथा बहुमुखी विद्वत्ता द्वारा अज्ञानतिमिरान्ध जैन समाज का ज्ञान- लोचन उन्मीलित करके, लोकोत्तर उपकार किया है उन्ही श्री १०५ क्षुल्लक गणेशप्रसाद वर्णी जी के कर कमलों में

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