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नश्री. केमके, स्वजन तथा मित्रो, माता, पिता, पुत्र, अमेस्त्री ए को माणस TI
तहारां सगां नश्री. केमके, जे देहनी संगाचे तेमने संबंध हतो, ते देहने बाली * कूटीने पनी पाणीनी अंजली आपीने अर्थात् ते फरीश्री पाग घेर श्राववाना
नथी एवी आशा मूकीने श्मशान थकी पोत पोताना स्वार्थने सनारतां पागं पोतपोताने घेर जाय .पण तेमांन को वहालु सगुंते जीवनी सा जतुंनथी।
॥आर्यावृत्तम् ॥ .विघटते वियुज्यते मुताः विघटनेबांधवाः बसलाः च विघटते
विहति सुआ विहमति । बंधवा बल्लहा य विहमति ॥ एकः कथमपि न विघटते धर्मः हे आत्मन् जिननणितः इको कहवि न विहड । धम्मोरे जीव जिणणि ॥१५
* शहा हे एवं संबोधन न मूकना रे एवं ने अबम संबोधन मूवयु ने, तेनुं ए प्रयोजन ने के, या जीवने धर्म विना कोइ पण सहाय्यारी नथी. बोपण तेने मूकीने यज्ञानताश्री वीजाने सहाय्यकारी मानी बेगे माटे.
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