Book Title: Vairagyashatakama
Author(s): Ramchandra D Shastri
Publisher: Ramchandra D Shastri

View full book text
Previous | Next

Page 258
________________ मान ले. (य के०) वली (सुमित्तो के०) सारा मित्र समान . (य के०) वली | (धम्मो के०) धर्म जे ते (परमो गुरु के) नत्कृष्टा गुरु समान ठे. वली ते (ध*म्मो के) धर्म जे ते (मुस्कमग्गपयट्टाणं के०) मोक्ष मार्गने विषे प्रवर्तेला पुरुषोने (परमसंदणो के०) नत्कृष्टा रथ समान . ॥ १०१॥ नावार्थ-जेम आपद् कालने विषे ना सहायता करे , तेम संसाररूप all आपदकालमां, आ जिनधर्म पण सहायता करे , माटे नाइ समान . तथा * सारो मित्र जेम हितकारी अर्थने मेलवो आपवाथी सुख करे , तेम आ धर्म| रूप मित्र पण मनोवांन्ति सुख मेलवी आपवाथी सुमित्र समान . तथा गुरु जेम असत् मार्गथी पागे वाले , तेम आ जिनधर्म पण, नरक तिर्यंचादिक * गतिमां जवाथी पाने वाले बे. माटे नत्कृष्टा गुरुतमान . तया रथे करीने जेम मार्गमां सुखे सुखे जवाय डे, तेम धर्मरूप र करीने मोक मार्गमां सुखे Ill सुखे जश् शकाय . माटे धर्मने परम रथ समान कयो बे. एवं जाणीने आवा जैनधर्मने विषे नद्यम करवो. ॥ १० ॥ XXXXXXXXXXXXXXXXXX XXXXX XXXXXXXXXX************* Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270