Book Title: Vairagyashatakama
Author(s): Ramchandra D Shastri
Publisher: Ramchandra D Shastri
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तेर कलामां कुशल एवा पंमित पुरुषो होय, तोपण जो तेमणे सर्व कलामां श्रेष्ट
एवी जे धर्मनी कला नथी जाणी, तो ते निश्चे अपंमितज जाणवा. माटे सर्व Ha परीक्षा करतां धर्मरूप रत्ननी परीक्षा करवी, तेज श्रेष्ठ परीक्षा .एण॥
॥अनुष्टुप वृत्तम्॥ . जिनधर्मः अयं जीवानां . अपूर्वः कल्पपादपः
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जिणधम्मो ऽयं जीवाणं। अप्पुवो कप्पपायवो ॥ ___. स्वर्गापवर्गसुखानां फलानां दायकः अयं । सग्गापवग्गसुकाणं । फलाणं दायगो इमो ॥ १०॥
अर्थ-(अयं के०) आ (जिणधम्मो के जिनधर्म जे ते ( जिवाणं के०) जी | * बोने (अप्पुवो के० ) अपूर्व एटले अप्रसिह एयो (कप्पपायवो के०) कल्पवृक्ष *. केम के, (इमो के०) ए जिनधर्मरूप कल्पवृक्ष जे ते (सग्गापवग्गसुस्काणं
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