Book Title: Vairagyashatakama
Author(s): Ramchandra D Shastri
Publisher: Ramchandra D Shastri

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Page 263
________________ आ ग्रंथना 20 मा तथा ६० मा पानानी पुंठिमां जणाव्यु ने के सागरोपमनुं तथा पुऊलपरावर्तन- स्वरूप ग्रंयने अंते जणावी शुं. ते ते शहां जणावीए बीए. * अति सूक्ष्मकालने एक समय कहे . तेवा असंख्याता समथे एक प्रावली पाय, तेवी (१६७७७१६) एक कोम समसग्लाख शितोतेरहजार बेर्शेने सोल पावलीये, एक मुहूर्त पाय . तेवा त्रीश मुहूर्ने एक अहोरात्रीरूप दिवस था Jail य. तेवा पंदर अहोरात्रीए एक पखवामियु थाय . तेवा वे पखवामिये एक महिनो थाय . तेवा बार महिने एक वर्ष थाय ने. तेवा असंख्याता कोमाकोमी वर्षे एक पेख्योपम थाय . तेवा दश कोमाकोनि पढ्योपमे एक अक्ष सागरोपम थाय. ॥ इति सागरोपम प्रमाणम्.॥ एज रीते एटले पूर्व कह्या तेवा दश कोमाकोमि सागरोपमे, नत्सपिणी / १३५ XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX KXXX******************* Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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