Book Title: Vairagyashatakama
Author(s): Ramchandra D Shastri
Publisher: Ramchandra D Shastri
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नावार्थ-जेम. जन्माराथी अंध थएला पुरुषोने स्थूल पदार्थ पण देखवामां all आवतो नथी, तेम मिथ्यात्वरूप कुवासनाये करीने विवेकरूप चकुये रहित थ
एला जीवोने पण, जिनशासनरूप सूर्य दीवामां आवतो नथी. एटले जिनशा. सननी प्राप्ति थती नथी । ए६ ॥ ..
पत्यदं अनंतगुणे जिनधर्मे न दोपलेशोपि ॥ पञ्चरकम ऽयंतगुणे । जिणिंदधम्मे न दोसलेसोवि॥ तथापि निश्चये अज्ञानेन अंधा न रमते कदापि तस्मिनजिनमते जीवाः
तहवि हु अन्नाणंधा। नरमंति कयावि तंमि जिया।ए॥ अर्थ-(पञ्चरकं के) प्रत्यक्ष प्रमाणे करीने सिह एवो, अने अणंतगुस के) अनंता ने गुण ते जेने विषे एवो (जिणिंदधम्मे के जिनेनो धर्म तैने विषे (दोलले सोधि के०) अपयश प्रमुख. दोषनो लेश पण (न के०) नथी. (तहवि * के.) तोयपण (अन्नाणंधा केए) अज्ञाने करीने प्रांधला एवा (जिया के०) जीव
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