Book Title: Vairagyashatakama
Author(s): Ramchandra D Shastri
Publisher: Ramchandra D Shastri

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Page 237
________________ 40 /* ढुकढुं जाएयु ले माटे. तेम दे चेतन! तहारां पण जेम जेम वर्ष जाय , तेम तेम तहारे पण मृत्यु सन्मुख आवे जाय . एटले जो कदि तहारं आयुष्य सो | वर्ष- होय, अने तेमांथी जे जे वर्ष गयां, तेटलुं आयुष्य सो वर्षमाथी नबुं प्रयु || जाणवू. अर्थात् आ अल्प आयुष्य ऊपाटावंध पुरु थशे. अने मनना मनसुवा *मनमां रही जशे. अने पाब्लथी घणोज पश्चात्ताप शे! माटे प्रमाद डोमीने परलोक- साधन करवामां सावधान था.॥ ए०॥ एज वातने मूल ग्रंथकार पण जणावे ले के, रे जीव बुध्यस्व मामुह्य मा प्रमादंयमैं कुरु पाप रेजीव बुन मामु । न मा पमायं करेसि रेपाव॥ किं परलोके गुरुजाखनाजनं भवसि . हे अज्ञान हे मूढ किं परलोए गुरुङ। कलायणं होहिसि अयाण ॥५॥ ११५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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