Book Title: Upasakdashangasutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 15
________________ शेठ श्री मीश्रीलालजी लालचंदजी लुणिया का सक्षिप्त परिचय इस भारतवर्ष के मरुधी प्रात में ओसवाल समाज के गौवररूप लुणिया वश में सरल स्वभावी-धर्मात्मा-लालचदजी नामक एक पवित्र पुरुष इसी वीसमी शताब्दी में-'चडावल' नाम के मुरम्य ग्राम में हो गये हैं। वे उम छोटे से गाव में धर्मकरणी करते हुए अपना आदर्श जीवन यापन करते थे; ययानाम तथागुण-वाली कहावतको चरितार्थ करनेवाली दयावाई नामक गुणनिप्पन्न गृहिणी (वम पत्नी) का सुसयोगसे उन्हे प्राप्त हुआ था इस आदर्श युगलसे सवत् १९६० के फाल्गुण कृष्णा १४ को प्रथम पुत्र रत्न उत्पन्न हुआ-जो मिश्री के समान मधु स्वमावी होने के कारण मिश्रीलालजी के नाम से प्रख्यात हुए। दूसरे और तीसरे वालकको भी क्रमशः सवत १९६३ तथा १९७२ में जन्मदिया जिनका नाम जेवतराजजी और फूलचदजी है. । देववशात् १९७४ ओर ७५ इन दो वपोंमें ही इस आदर्शयुगलने-तीनो भाइयोको पाल्यअवस्थामें ही छोड कर इस नश्वर ससारसे किनारा करलिया अचानक यह वज्रपात हो जानेसे ये बालक घबराये नहीं-का है "पुण्यदान विरवारनके होत चीकनेवाद" जिसकी पूर्व पुण्यवानी प्रबल होती है उसे कोई न कोई अच्छा सह योग प्राप्त होहो जाता है-हा एकवात यह है कि ऐसे व्यक्तियोंके ऐसे ही अनुभवके अखाडोंका सयोग मिल जाया करता है. वाल्यकालमें ही एक साथ दोनों मातापिताओंका वियोग कितना असह्य होता है वह दुःख वहीं जानता हैं जिसने अनुभव किया हो-स्वयपर वीतनेसेही दूसरों पर वितीका ख्याल आता है और यही उनको मददरूप हो सकता है परिग्रह ऐश्वर्य सपत्ति प्राप्त हो जानेपर दया-नम्रता आदि गुण प्रायः रफूचक्कर हो जाते है कोईक जिसके प्रवलपुण्यका उदय हो वह कमलकी तरह-भोगोंसे अलिप्त रह सकता है-आपकी गणना उन्हीं में की जा सकती है। ___आगे बढ़ने के लिये-अचानक वियोगके समान-सहयोगश्री पिपल्या निवासी श्रीमान किसनलाझनी सा का उन्हें प्राप्त हो गया अपने कोई पुत्र

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