Book Title: Tulsi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Bacchulal Avasthi
Publisher: Books and Books

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Page 401
________________ तुलसी शब्द-कोश 3891 डरहिं, ही : आ० (१) प्रब० । (वे) डरते-ती हैं । 'कालहु डरहिं न रन रघुबंसी।' मा० १.२८४.४ (२) उब० । (हम) डरते-ती-हैं। तिय सुभायँ कछु पूछत डरहीं।' मा० २.११६.६ डरहि, ही : आ०मए । तू डरता है । 'बायस इव सब ही तें डरही।' मा० ७.११२.१४ डरहु : आमब० । तुम डरते हो । 'डरहु दरिद्रहि पारसु पाएँ ।' मा० २.२१०.२ डरहुगे : आ०भ०पु०मब० । डरोगे । 'कुटिल मन मलिन जिय जानि जो डरहुगे।' विन० २११.४ डरि : कृ० । भय खा कर । 'बिदा भई देबी सों जननि डर डरि ।' गी० २.७२.४ उरिबे : भक०० डरना । 'लौकिक डर डरिबे हो ।' कृ० ३६ डरिये : आ०भावा० । डरा जाय, डरना पड़ता है। 'निज आचरन बिचारि हारि हिय मानि जानि डरिये ।' विन० १८६.१ डरिहैं : आ०भ०प्रब० । डरेंगे । 'डरिहैं सासु ससुर चोरी सुनि ।' क० १३ डरिहै : आ०भ० प्रए । डरेगा । 'सपनें नहिं कालहु तें डरिहै ।' कवि० ७.४७ डरी : भूकृ०स्त्री०ब० । डर गयीं। तासु बचन सुनि ते सब डरी ।' मा० ५.११.८ डरु : (१) डर+कए । एकमात्र भय । ‘मन डरु लोचन लालची।' मा० १.४८ (२) आ०-आज्ञा-मए० । तू डर । 'रामहि डरु करु राम सों ममता प्रीति प्रतीति ।' दो० ६५ डरे : भकृ००ब० । डर गये । 'डरे कुटिल नृप प्रभु हि निहारी। मा० १.२४१.६ डरेउँ : आ०-भूक००+उए । मैं डर गया। 'अपभयँ डरेउँ न सोच समूलें।' मा० २.२६७.३ डरेउ : भूकृ०पु०कए। डर गया। 'निज भयँ डरेउ मनोभव पापी ।' मा० १.१२६.७ डरें : डरहिं । 'कबहूं प्रतिबिंब निहारि डरै ।' कवि० १.४ डर : डरइ । 'सो परि डरै मर रजु अहि तें।' विन० १८८.५ उरंगी : आ०भ० स्त्री०प्रए० । भयभीत होगी। हनु० २५ डरौं : डरउँ । (१) डरता हूँ। तेहि तें बूझत काजु डरौं ।' जा०म० २२ (२) डरूँ, डरता होऊँ । 'अनद्य नाम अनुमानि डरौं ।' विन० १४१.१ डर्यो : डरेउ । 'भव भय बिकल डर्यो।' विन० ६१.४ डसत : वकृ०० (सं० दशत् >प्रा० डसंत)। दंश करता, डसता, डसते रही। ___भव भुअंग तुलसी नकुल डसत ग्यान हरि लेत ।' दो० १८० डसाई : (१) भू० कृ०स्त्री० । बिछायी। 'गुहँ सारि साथरी डसाई ।' मा० २.८९.७ (२) पूकृ० । बिछाकर । 'ठे कपि सब दर्भ डसाई।' मा० ४.२६.१०

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