Book Title: Tulsi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Bacchulal Avasthi
Publisher: Books and Books

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Page 497
________________ तुलसी शब्द-कोश 485 धनुहिया : धनुही । गी० १.४४.१ घनुहीं : धनुही+ब० । 'बहु धनुहीं तोरी लरिकाई।' मा० १.२७१.७ धनुही : धनुहा+स्त्री० । छोटा धनुष । 'धनुही सम त्रिपुरारि धनु ।' मा० १.२७१ धनेस, सा : वि०+सं.पु. (सं० धनेश)। (१) धनाधीश, धनवान् (२) कुबेर । ___ 'अध अवगुन धन धनी धनेसा।' मा० १.४.५ धनेसु : धनेस+कए० । कुबेर । कवि० ७.७८ । धन्य : वि.पु. (सं.)। उत्तम, श्रेष्ठ, भाग्य सम्पन्न, महामहिम, प्रशस्य । 'अहो धन्य तब जन्म मुनीसा ।' मा० १.१०४.४ धन्या : (१) धन्य+स्त्री०। 'मेकलसुता गोदावरि धन्या ।' मा० २.२३८.४ (२) धन्याः । विन० ६१.७ धन्याः : धन्य +कब० (सं०) । मा० ४ श्लो० २ धन्वी : वि०० (सं० धन्विन्) । धनुर्धर । मा० ३.२२.६ धमधूसर : वि.पु. (सं० धर्मधूसर ?) । गुणों (धर्म) में मलिन, स्वभाव से कलुष, मस्तंड, मिट्टी के ढेर के समान मूढ़, पेट, निठल्ला । 'कलिकाल बिचारु अचारु हरो, नहिं सूझै कछू धमधूसर को।' कवि० ७ १६ घमधूसरो : धमधूसर भी। 'अपनायो तुलसी सो धींग धमधूसरो।' कवि० ७.१६ घर : (१) वि०० (सं०) । धारणकर्ता । 'कमठ सेस सम धर बसुधा के ।' मा० १.२०.७ (२) धरा, पृथ्वी । 'मम पाछे धर धावत धरें सरासन बान ।' मा० ३.२६ (३) सं०० । धड़, रुंड । 'धर तें भिन्न तासु सिर कीन्हा ।' मा. ६.७१.४ /धर धरह, ई : आ०प्रए० (१) (सं० धरति-धून धारणे>प्रा० धरइ) । धारण करता है । 'तपबल सेषु धरइ महि भारा।' मा० १.७३.४ (२) रखता है, स्थापित करता है। 'मनु कुपंथ पगु धरइ न काऊ ।' मा० १.२३१.५ (३) (सं० धरति-धृ ग्रहणे) पकड़ता है। (४) (सं० ध्रियते-धृङ अवस्थाने) ठहरता है, रहता है । धरई : धरहिं । पकड़ते हैं । 'ललनागन जब जेहि धरइँ धाइ।' गी० ७.२२.६ घरउ, ऊ : आ०उए । धारण करता हूं। 'धरउ देह नहिं आन निहोरें।' मा० ५.४८.८ घरकत : वकृ०० । कांपते, लड़खड़ाते । 'दास तुलसी परत धरनि धरकत ।' कवि० धरकी : भूक०स्त्री० । धड़क चली, (हृदय गति) तीव्र हो चली। 'सुरगन समय धकधकी धरकी।' मा० २.२४१.७ परत : व.पु. । (१) धारण करता-करते । मा० ५.२१.६ (२) रखता-रखते। _ 'अय इव जरत धरत पग धरनी।' मा० १.२६८.५ (३) क्रियाति००ए० ।

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