Book Title: Tulsi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Bacchulal Avasthi
Publisher: Books and Books

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Page 534
________________ 522 तुलसी शब्द-कोश निकसि : पूकृ० । निकल कर । 'निकसि बसिष्ठ द्वार भये ठाढ़े ।' मा० २.८०.१ निकसे : भूक०पु०ब० । निकले, प्रकट हुए । 'निकसे जनु जुग बिमल बिधु ।' मा० १.२३२ निका : निकाई से, भलाई में । 'राम निकाई रावरी है सबही को नीक ।' मा० १.२६ ख निकाई : (दे० नीक) सं० स्त्री० । स्वच्छता, पवित्रता, मनोहरता । 'बनइ न बरत नगर निकाई ।' मा० १.२१३.१ (२) भलाई, अच्छाई । 'भलो कियो खल को, निकाई सोनसाई है ।' कवि० ७.१८१ निकाज : वि० (सं० निष्कार्य > प्रा० निक्कज्ज ) । निकम्मा, व्यर्थ (तुच्छ) । 'निरबल निपट निकाज ।' दो० ५४४ 1 निकाम, मा: क्रि०वि० (सं० निकामम्) । (१) अत्यधिक, पर्याप्त । 'निकाम स्याम सु ंदरं ।' मा० ३.४ छं० २ (२) यथेष्ट । 'देहि केकइहि खोरि निकामा ।' मा० २.२०२.३ निकाय : सं०पु० (सं० ) । समूह, बहुत, झुंड के झुंड । 'ऐसे नर निकाय जग अहहीं ।' मा० ६.६.८ निकाया: निकाय । मा० १.१८३.४ निकाह : आ०प्रब० । निकाल देते हैं । 'कुलवंति निकार हि नारि सती । मा० ७.१०१.३ निकारि : पूकृ० । निकाल कर । मा० ६.८५ छं० नकास निकास : (सं० निष्कासयति > प्रा० निक्कासह) आ०प्र० । निकालता है । 'तेहि बहु बिधि भासइ देस निकासइ ।' मा० १.१८३ छं० निकासौं : आ० उ० । निकालूं । 'कहु केहि नृपहि निकासी देसू ।' मा० २.२६.२ निकिष्ट : वि० (सं० निकृष्ट ) । अधम, नीच ( उत्कृष्ट का विलोम ) । मा० ३.५.१४ निकेत : सं०पु० (सं०) । (१) घर, आवास । मा० २.३२० ( २ ) शरीर = जीव का भोगायतन । (३) चिन्ह, उपस्थ इन्द्रिय । परसे बिना निकेत ।' वैरा० ३ निकेता : निकेत | मा० ४.१४.६ निकेतु : निकेत + कए० । घर । 'जरत निकेतु, धावो धावो ।' कवि० ५.६ निकैया : निकाई । सुन्दरता । 'नखसिख निरखि निकैया ।' गी० १.९.२ निखंग : निषंग । गी० १.५३.२ = निगड़ : सं०पु० (सं० ) । लोहे का कड़ा या शृंखला जो कैदी को पहनाते हैं: बेड़ी । 'बाँध्यो हौं करम जड़ गरब गूढ़ निगड़ ।' विन० ७६.२ निगदित: भूकृ०पु० (सं० ) । पठित, पाठ में आया, कहा या पढ़ा गया । 'रामायणे दिगदित । मा० १ श्लोक ७

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