Book Title: Tulsi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Bacchulal Avasthi
Publisher: Books and Books
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तुलसी शब्द-कोश
अपोह ( वर्जन) करते-करते ब्रह्म साक्षात्कार की विधि - क्योंकि वह इन्द्रियों से ज्ञेय ( प्रमेय नहीं है । सारद सेस महेस बिधि आगम निगम पुरान । 'नेति नेति कहि जासु गुन करहिं निरंतर गन । मा० १.१२
ब : सं०पु० (सं० नीव्र > प्रा० निव्व नेव्व ) । (१) छप्पर आदि की धरन, आधारकाष्ठ । (२) पहिये को घेरने वाला लोह-मण्डल जो उसे घिसने से बचाता है । ( ३ ) रक्षक, आश्रय, सहायक । 'लखनु राम के नेब ।' मा० २.१६ (४) अरबी – नायब = मातहत ) । अधीन ।
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नेम, मा: नियम । मा० १.१७.३
नेमु : नेम + कए० । एकनिष्ठा । 'नेमु पेमु संकर कर देखा ।' मा० १.७६.४ नेरी : वि०स्त्री० (सं० निकटा > प्रा० निअडी) । समीपस्थ । 'जाहि मृत्युआई नेरी ।' मा० ५.५३.४
नेरें : क्रि०वि० । (सं० निकटेन > प्रा० निअडे > अ० निअडें ) । समीप में । 'सुत मातु पिता हित बंधुन नेरें ।' कवि० ७.५०
नेरे : नेरें (सं० निकटे > प्रा० निअडे ) । 'जिवन अवधि अति नेरे ।' विन० २७ नेरो : वि०पु० ए० । समीपस्थ । 'जाउँ सुमारग नेरो ।' विन० १४३.६ नेवछावरि : सं० स्त्री० । मङ्गलकार्यों में वर-कन्या, शिशु आदि पर उतरकर दिया जाने वाला द्रव्य अथवा उस द्रव्य के उतारने की क्रिया । 'करि आरति नेवछावरि करहीं ।' मा० १.१६४.५ प्राकृत में 'नेवच्छ' धातु उतारने के अर्थ में है जिसका सम्बन्ध संस्कृत 'नेपथ्य' ( परिधान) से जुड़ता है । मुद्रा के स्थान पर वस्त्रों को उतारकर देने की पहले प्रथा रही होगी (सं० नेपथ्याबलि > प्रा० नेवच्छावलि) ।
नेवत : सं०पु० (सं० तंमन्त्रणक= नै मन्त्र > प्रा० नेमंत > अ० नेवंत ) । निमन्त्रण, न्योता, निमन्त्रण पत्र | 'यह अनुचित नहि नेवत पठावा ।' मा० १.६२.१ ant : भू०पु० । निमन्त्रित किया । 'पाहुन बड़ नेवता ।' मा० २.२१३.७ afa : पूकृ० । निमन्त्रित करके । 'पोथी नेवति पूजि प्रभात सप्रेम ।' रा०प्र० ७.७ नेवते : (१) भूकृ०पु०ब० । निमन्त्रित किए। 'नेवते सादर सकलसुर ।' मा० १.६० (२) सं०पु०ब० निमन्त्रण | 'नेवते दिये ।' गी० १.५.५
नेवाज : निवाज (फा० नवाजिश = मेहरबानी ) । कृपालु, शरण देने वाला । नेवाजा : निवाजा। 'राम कृपाल निषाद नेवाजा । मा० २.२५०८ नेवाजि : निवाजि । बिभीषनु नेवाजि सेत सागर तरन भो । कवि० ६.५६
नेवाजिए : आ०कवा० प्र० । शरण दिया जाता है । 'रीति महाराज की नेवाजिए
जो माँगनो सो ।' कवि० ७.२५
वाजिहैं : निवाजिहैं । 'राजु दै नेवाजिहैं बजाइ के बिभीषने ।' कवि० ६.२ नेवाजी : नेवाजि । शरण में लेकर । मा० २.२६६.५

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