Book Title: Tulsi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Bacchulal Avasthi
Publisher: Books and Books
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तुलसी शब्द-कोश
नाकपाल : नाकपति । कवि० ७.२३ नाकेस : (सं० नाकेश) इन्द्र । गी० ७.१६.१ नाग : सं०० (सं०) । (१) सपं । 'खगपति सब धरि खाए नाना नाग बरूथ ।'
मा० ६.७४ क (२) हाथी । 'सजहु तुरग रथ नाग ।' मा० २.६ (३) पातालवासी जातिविशेष जिसका सिर (पुराणों में) सर्प का कहा गया है । 'देव दनुज
नर नाग खग ।' मा० १.७ घ नागपास : (सं० नागपाश)। सर्प-बन्धन, मायिक सर्पबाणों का जाल । 'नागपाल
बाँधेसि ले गयऊ ।' मा० ५.२०.२ मागमनि : (१) सर्प की मणि (२) गजमुक्ता । 'उर अति रुचिर नागमनि
माला ।' मा० १.२१६.५ नागर : वि.पु. (सं.)। (१) नगरनिवासी। गनी गरीब ग्राम-नर नागर ।'
मा० १.२८.६ (२) शिष्ट, सुसंस्कृत, सभ्य । ‘गुनसागर नागर बर बीरा।' मा० १.२४१.२ (३) कलाकुशल । 'नागर नट चितवहिं चकित हगहिं न ताल बंधान ।' मा० १.३०२ (४) दक्ष, निपुण, विवेकशील । 'बोले बचनु राम नय नागर ।' मा० २.७०.७ (५) तीव्र, क्षिप्रकारी । 'अतिनागर भवसागर सेतुः।' मा० ३.११.१४ (६) काव्य की या कथन की कोमल गुणों से सम्पन्न रीति में
निपुण । 'जयति बचन रचना अति नागर ।' मा० १ २८५.३ नागरमनि : नागरों में श्रेष्ठ । 'नटनागरमनि नंदललाऊ ।' कृ० १२ नागराज : गजराज । विन० ६३.२ नागरि : नागरी । ग्वालिनि अति नागरि ।' कृ० १२ नागरिपु : (१) सर्प शत्रु =गरुड़ । (२) गजशत्रु =सिंह । 'निज कर डासि नागरिपु
छाला ।' मा० १.१०६.५ नागरी : नागरी+ब० । नगर की कुशल सुन्दरियाँ । 'लोचन लाह लूटति नागरी।'
जा०पं० १६ नागरी : नागर+स्त्री० (सं.)। मागा : नाग। (१) हाथी। मा० १.१०१.७ (२) सर्प । 'जनु सपच्छ धावहिं
बहु नागा।' मा० ६.५०.५ (३) पाताल की जाति । मा० १.१८२.११ मागे : वि.पु. (सं० नग्नक>प्रा० नग्गय) । दिगम्बर, निर्वसन (शिव) । 'नागे
के आगे हैं मागने बाढ़े ।' कवि० ७.१५४ नागेन्द्र : (सं०) । गजराज, हस्तियूथप । विन० ४६.४ नागो : वि.पु०कए० (सं० नग्न:>प्रा० नग्गो)। दिगम्बर, वस्त्रहीन । 'नागो
फिर, कहै मागनो देखि, न खागो कछु ।' कवि० ७.१५३

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