Book Title: Tulsi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Bacchulal Avasthi
Publisher: Books and Books

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Page 519
________________ तुलसी शब-कोल 507 दो अर्थ हैं-(१) अपूर्व निधि या अद्भुत धनागार (२) नवसंख्यक निधियाँ महापा, पन, शङ्ख, मकर, कच्छप, मुकुन्द, कुन्द, नील और खर्व ) नवनीत : सं०० (सं०) । मक्खन । नैन । 'संत हृदय नवनीत समाना।' मा० ७.१२५.७ नवनीता : नवनीत । मा० ७.१२५.८ नवम : वि०पुं० (सं०) । नौा । मा० ३.३६.५ नवमी : वि०+सं०स्त्री० (सं.)। (१) नवीं बात (२) पाख की नवीं तिथि । _ विन० २०३.१० नवरत्न : मुक्ता, माणिक्य, बिल्लोर, गोमेद, हीरा, विद्रुम (लाल मूंगा), पद्मराग, मरकत और नीलम ये क्रमशः मूल्यवान् रत्न हैं । 'मुक्ता-माणिक्य-वैदूर्य-गोमेदा वज्र-विद्रुमौ । पद्मरागो मरकतं नीलश्चेति यथाक्रमम् ।' मा० ७.२३.६ नवरस : शृङ्गार, वीर, करुण, अद्भुत, हास्य, भयानक, बीभत्स, रौद्र और शान्त । 'तो षटरस नवरस रस अनरस वै जाते सब सीठे।' विन० १६६.? नवल : वि० (सं०) । अत्यन्त नवीन, सद्यस्क । मा० १.२४८.२ नवला : वि०स्त्री० (सं०) । नवयुवती, नबेली। 'का घूघट मुख मूदहु नवला __ नारि । बर० १७ नवग्रह : सूर्य, चन्द्र, मङ्गल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु-ग्रह। विन० ६२.७ नवसत : नवसप्त । 'नवसत सँवारि सुदरि चलीं।' गी० ७.१८.४ नवसप्त : संख्या (सं.) । सोलह (षोडश शृङ्गार) । मा० १.२२२ छं० नवसात : नवसप्त । 'राजति बिन भूषन नवसात ।' गी० २.१५.३ नवहिं : (१) नौ से। . वहिं बिरोधे नहिं कल्याना ।' मा० ३ २६.३ (२) आप्रब० । झुकते हैं, नत होते हैं। 'पर उपकारी पुरुष जिमि नवहिं सुसंपति पाइ।' मा० ३.४० नवहीं : नवहिं । नत होते हैं । 'मुनि रघुबीर परसपर नवहीं।' मा० २.१०८.४ नवावहिं : आ०प्रब० (सं० नमयन्ति'>प्रा० नवावंति>अ० नवावहिं) । झुकाते हैं । _ 'प्रभु कर जोरें सीस नवावहिं ।' मा० ७.३३.४ नवावौं : आ० उए० । झुका दू, झुका सकता हूं। 'का बापुरो पिनाक, मेलि गुन मंदर मेरु नवावौं ।' गी० १.८६.८ नवे : नवइ । नस : सं०स्त्री० (सं० स्नसा>प्रा० नसा>अ० नस)। स्नायु, नाड़ी। 'अस्थि सल, सरिता नस जारा।' मा० ६.१५.७ /नसा नसाइ, ई : (सं० नश्यति>प्रा० नासइ) आ०प्रए । (१) मिटता है । 'सुनि कलि कलुष नसाइ ।' मा० १.२६ ग (२) अदृश्य होता-ती है। कहत

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