Book Title: Tulsi Prajna 2000 10
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 24
________________ "सोमग्रहण जो देखा तो असतियाँ निःशङ्क होकर हसीं, (और कहा) 'हे राह! (अच्छा किया) प्रियजन से वियोग कराने वाले इस चन्द्र को निगल जाओ'।" (छ) सूत्र 401 उदाहरण-पद्य-क्रमांङ्क 4 भण सहि निहुअउँ तेवँ मइं, जड़ पिउ दिट्ठ सदोस । जेवँ न जाणइ मज्झु मणु, पक्खावडिअं तासु ॥ छाया भण सखि निभृतकं तथा मयि यदि प्रियः दृष्टः सदोषः यथा न जानाति मम मनः पक्षापतितं तस्य ।। भाषान्तर “सखि, तू ने यदि मेरे प्रेमी को मेरे प्रति सदोष पाया है तो मुझे चुपचाप बता दो; इस तरह कहो कि वह जान भी न पाये कि मेरा मन उसका पक्ष लेता है यानि मैं उसके प्रेम में पगी हूँ।" यहाँ एक सखि दूसरी सखि से बोल रही है। प्रेमी के जानने या न जानने का प्रश्न ही नहीं उठता। वस्तुतः यहाँ उक्ति में विरोधाभास अलंकार का प्रयोग किया गया है। सखि कहती है, इस तरह कहो कि स्वयं मेरा मन भी न जाने।' पूरे पद्य का अनुवाद इस तरह किया जा सकता है “सखि ! यदि तूने प्रिय को सदोष (अन्यासक्त) पाया है, तो मुझे चुपचाप बता दो; इस तरह बताना कि उसका पक्षपाती मेरा यह मन जान न पाये (क्योंकि अब यह माननेवाला है नहीं)।"5 (ज) सूत्र 404 उदाहरणपद्य-क्रमाङ्क 1 जइ सो घडदि प्रयावदी केत्थु वि लेप्पिणुि सिक्खु। जेत्थु वि तेत्थु वि एत्थु जगि भण तो तहि सारिक्खु ।। छाया यदि स घटयति प्रजापतिः कुत्रापि लात्वा शिक्षाम् । यत्रापि तत्रापि अत्र जगति भण तदा तस्याः सदृक्षीम् ।। भाषान्तर “यदि प्रजापति कहीं से शिक्षा लेकर निर्माण करता है तो वह संसार में उसके सदृश कोई अन्य बना सकता है।" भाषान्तर में मूल की दूसरी पंक्ति में आया हुआ भण' शब्द गौण है। पूरी दूसरी पंक्ति प्रश्न के रूप में है। निम्नलिखित रूप से भाषान्तर करना अच्छा है __“यदि प्रजापति कहीं से शिक्षा लेकर (किसी आदर्श के आधार पर) निर्माण करता है तो संसार में यहाँ वहाँ कहीं उसका सादृश्य बताओ। (चूंकि कहीं उसका प्रतिरूप नहीं है, इसलिए वह किसी आदर्श पर घटित नहीं है, अपूर्व और अद्वितीय है)"6 (झ) सूत्र 406 उदाहरण पद्य-क्रमाङ्क 3 जामहिं विसमी कज्ज-गई जीवहँ मज्झे एइ। तामहि अच्छउ इयरु जणु सुअणु वि अन्तरु देइ॥ m ] तुलसी प्रज्ञा अंक 110 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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