Book Title: Tulsi Prajna 2000 10
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 69
________________ 4. उपमान का उपनय में (महानस के समान वह्नि की व्याप्ति से युक्त धूमवाला वह पर्वत है।) ___5. सब प्रमाणों का वह्नि रूप अर्थ को सिद्ध करने में जो सामर्थ्य प्रदर्शन है उसका निगमन' में (इस प्रकार पर्वत वह्निमान है।) उक्त पांच अवयवों के योग से जो एक न्यायवाक्य बनता है, भाष्यकार उसे परम न्याय कहते हैं। जिस अनुमान से दूसरे को अनुमिति होती है उसे परार्थानुमान कहा जाता है। न्यायवाक्य का प्रयोग दूसरे को अनुमिति कराने के लिए होता है। इसीलिए न्यायवार्त्तिकार ने न्याय वाक्य के अवयवों को ‘पर प्रतिपादक' कहा है। दिङ्नाग के पूर्व बौद्धदर्शन में भी पांच अवयव माने गये हैं। किन्तु दिङ्नाग ने पाँच के स्थान पर पक्ष, हेतु और दृष्टान्त केवल तीन ही अवयवों को मानना प्रारम्भ किया।10 उद्योतकर के विचार में वाक्य के एक देश को अवयव कहते हैं। वाचस्पतिमिश्र ने भी उद्योतकर के मत का अनुसरण किया है। जयन्तभट्ट ने सिद्धान्त का विश्लेषण करते हुए कहा कि अवयवों का लक्षण अवयवत्व है न कि पदत्व। जैन तर्कशास्त्र में अनुमान के अवयवों का सर्वप्रथम संकेत हमें आचार्य गृद्धपिच्छ के तत्वार्थ सूत्र में मिलता है। गृद्धपिच्छ ने अनुमान का उल्लेख अनुमान शब्द द्वारा नहीं किया। न उन्होंने अवयवों का निर्देश अवयव रूप में किया है पर उनके द्वारा सूत्रों में प्रतिपादित आत्मा के उर्ध्वगमन सिद्धान्त से प्रतिज्ञा, हेतु और दृष्टान्त, ये तीन अवयव फलित होते हैं। उन्होंने मुक्त जीव के उर्ध्वगमन की सिद्धि में परार्थानुमान के निम्न अवयवों को प्रस्तुत किया है। यथा 1. तदनन्तरमूवंगच्छत्यालोकान्तात् । 2. पूर्वप्रयोगादसङ्गत्वाद्वन्धच्छेदात्तथागतिपरिणामाच्च । 3. अविद्धकुलालचक्रवद्व्यपगतलेपालाबूवदेरण्डबीजवदग्निशिखाच्च । उपरोक्त सूत्रों में 'ऊर्ध्वगच्छन्त्यालोकान्तात् ऊर्ध्वगमन रूप प्रतिज्ञा (पक्ष) है। अगले सूत्र में पूर्वप्रयोगात्', 'असङ्गत्वात्' 'बन्धच्छेदात्' और 'तथागति परिणामात्' प्रतिज्ञा को पुष्ट करने के लिए चार हेतु दिये गये हैं। उक्त चार हेतुओं के समर्थन के लिए चार दृष्टान्त प्रयुक्त किये गये हैं। ‘आविद्धकुलाल चक्रवत्', 'व्यपगलेपालाबूवत्', ‘एरण्डबीजवत्' और 'अग्निशिखावत्' ये चार दृष्टान्त प्रयुक्त हैं। इस प्रकार सूत्रकार ने प्रतिज्ञा, हेतु और उदाहरण के रूप में तीन अवयवों का प्रयोग कर अनुमान-वाक्य को पुष्ट किया। ___ श्रीमदाचार्य गृद्धपिच्छ प्रणीत तत्वार्थसूत्र के वृत्तिकार श्रीमदाचार्य पूज्यपाद ने सर्वार्थसिद्धि की उत्थानिकाओं में सूत्रकार के मन्तव्य को स्पष्ट किया है, इससे अभिप्राय की पुष्टि होती है। इन्होंने बताया कि हेतु के कथन किये बिना उर्ध्वगमन रूप जो प्रतिज्ञा है तुलसी प्रज्ञा अक्टूबर-दिसम्बर, 20000 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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