Book Title: Tulsi Prajna 2000 10
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 84
________________ 11. प्राकृत में ट, ठ का परिवर्तन क्रमशः ड, ढ में होता है । विवेकमंजरी प्रकरण में इसके उदाहरण हैं कुटुम्ब विकट इस प्रकार विवेकमंजरी प्रकरण में उक्त विशेषताएं उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त भी प्राकृत के सामान्य लक्षण इसमें घटित होते हैं। चूंकि महाराष्ट्री प्राकृत में यह कृति लिखी गई है, इसलिए सामान्य प्राकृत के सभी नियमों को विवेचित करना समीचीन नहीं है। अतिरिक्त जन विशेषताओं का प्रयोग रचनाकार ने किया है उनका सोदाहरण निर्देश यहां किया गया है। कुडुंब ( गाथा 106 ) aिrs ( गाथा 125 ) विवेकमंजरी प्रकरण की शैली सरल, सहज है। कुछ पद्यों में समासान्त पदावली का प्रयोग कवि की प्रतिभा को उजागर करता है। कवि ने कुछ पदों में समास प्रयोग किया है। जैसे तेलुक्क, त्रिभुवन, चउसरणे, चक्कवट्टी, चउविसं, पनरस आदि । इस प्रकार यह कृति छन्द, अलंकार, सूक्ति आदि के प्रयोग से उत्कृष्ट बन पड़ी है। ' 78 1. जैन साहित्य का वृहद् इतिहास, भाग 4 पृष्ठ 197 2. जैन साहित्यनों संक्षिप्त इतिहास, पृष्ठ 338-339 3. विवेकमंजरी वृत्ति प्रशस्ति-पीटर्सन का हस्तप्रतिविषयक रिपोर्ट 3, पृष्ठ 100 सन् 1884-86 4. जैन साहित्य का वृहद् इतिहास, भाग 4 पृष्ठ 216 Jain Education International For Private & Personal Use Only - जैन विश्वभारती संस्थान मान्य विश्वविद्यालय लाडनूं (राज.) तुलसी प्रज्ञा अंक 110 www.jainelibrary.org

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