Book Title: Tulsi Prajna 2000 10
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 86
________________ एक बहुत बड़े वैज्ञानिक हो गए हैं आइन्स्टीन। जब वे मृत्यु-शैया पर थे तब एक पत्रकार उनका साक्षात्कार लेने किसी तरह पहुंचा और उसने केवल एक ही प्रश्न किया। उसने पूछा-आप मरने के बाद दूसरे जन्म में क्या होना पसन्द करेंगे? आइंस्टीन का संक्षिप्त सा जवाब था- "कुछ भी, एक पर वैज्ञानिक नहीं"। भला जिसने अपनी सारी जिन्दगी विज्ञान के लिये समर्पित कर दी हो, उसके मन में विज्ञान के लिये इतनी वितृष्णा एवं अफसोस क्यों हुआ? आइंस्टीन ने खुलासा किया-“आज सुबह 10 बजे डॉ. ने जवाब दे दिया कि 24 घण्टे से ज्यादा आप नहीं जी सकेंगे। मुझे अफसोस है कि मैंने सैकड़ों आविष्कार किये मगर उस तत्व की खोज करने का कभी प्रयास नहीं किया जिसके कारण मैं अब तक जीवित रहा। जिसके निकल जाने के बाद आइन्स्टीन, आइन्स्टीन नहीं रह जायेगा, मात्र माटी का पुतला कहलाने लगेगा। सबको जाना, परन्तु उस एक तत्व से अनजान बना रहा।" आइन्स्टीन का संकेत था कि विज्ञान का आध्यात्मीकरण हो। जबकि अध्यात्म का वैज्ञानिकीकरण करने पर जोर दिया जा रहा है, परन्तु विज्ञान के पंख आध्यात्मिकता की ओर बढ़ने के लिये भी प्रयत्नशील होने चाहिये। शिक्षा में उस ज्ञान तत्व को समाहित किया जाना चाहिये जिसके अभाव में हमारी यह आधुनिक शिक्षा दिशाहीन होकर भटक गई है। जिसके कारण शिक्षित युवा, आक्रोश और हिंसा से भरा हुआ है और उसकी ऊर्जा विनाश की ओर बह रही है। शिक्षा में इस मौलिक अवधारणा का समावेश किया जाना अति आवश्यक है कि मनुष्य का दुःख केवल शारीरिक नहीं है बल्कि वह अपने विचारों से दुःखी है। अपनी इच्छाओं एवं अपने स्वार्थ की पूर्ति न हो पाने के कारण से दुःखी है। उसके दुःख का मूल उसके अन्दर पल रहे कुत्सित विचार हैं। वह दो बातों के कारण दुःखी है :__ 1. परिग्रह की अतिलालसा के कारण :- जिसके लिये वह हिंसा, झूठ, चोरी व पाप के लिये प्रेरित होता है। 2. काम भावना से यौनाभिमुख होने के कारण। जैन दर्शन के पंच अणुव्रत उक्त बातों से उपजे दुःख का सही समाधान है। पंच अणुव्रतों के अनुशीलन से एक ऐसे अहिंसक-समाज का निर्माण संभव है जो निश्शस्त्रीकरण और शान्ति की दिशा में एक अचूक पहल है। जिसमें शोषण नहीं, समानता होगी। जिसमें झूठ को स्थान नहीं, चौर्य कर्म को कतई बढ़ावा नहीं बल्कि निष्ठा और ईमानदारी होगी। अणुव्रत बढ़ती हुई कामुकता और यौन प्रवृत्ति पर अंकुश लगा सकता है। हमारी शिक्षा में ऐसी अवधारणा विकसित की जाना चाहिये, जो रोटी और भोग से नहीं, बल्कि संस्कृति और योग से जुड़ी हो। प्रत्येक विश्वविद्यालय स्तर पर “आध्यात्मिक-प्रयोगशाला" स्थापित की जाये 80 तुलसी प्रज्ञा अंक 110 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128