Book Title: Tulsi Prajna 2000 10
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 34
________________ अंतः सम्पूर्ण नयों से विलसित विरोधों का परिहार कर वस्तु तत्व के यथार्थ निरूपण से समन्वय का मार्ग करने वाला अनेकान्त वन्दनीय है। सकलनयविलसितानां विरोधमथनं नमाम्यनेकान्तम् ।29 संदर्भ : 1. मुनि ज्ञानसागर-वीरोदय काव्य-19/22 2. मुनि ज्ञानसागर-वीरोदय काव्य 19/4,5 3. अनेकान्तात्मकायं कथनं स्याद्वादः लघीयस्त्रय टीका 4. डा. रामजीसिंह जैन विद्या एवं प्राकृत में प्रकाशित निबन्ध-समन्वय की साधना और जैन संस्कृति, पृष्ठ 20 5. तदेजति तन्नैजति तदूरे तद्वन्तिके-ईश. 5, अणोरणीयान् महतो महीयान्-कठ. 2-20 ___ सदसच्चामृतं च यत् पृ. 2-5 6. प्रो. ध्रुव-स्याद्वाद मंजरी-प्रस्तावना 7. अस्तीति काश्यपो एवं एकोऽन्तः नास्तीति काश्यपो अयं एकोऽन्तः यदनयोर्द्वयोः अन्तयोर्मध्यं तदरूप्यं अनिदर्शनः अप्रतिष्ठं अनाभासं अनिकेतं अविज्ञप्तिकं यमुच्यते काश्यपः मध्यम प्रतिपद धर्माणां। काश्यप परिवर्तन महायान सूत्र । 8. षड्दर्शनसमुच्चय-गुणरत्नटीका पृष्ठ 96-98 अध्यात्मसार 45-51 9. Thilly: Historyof Philosophy,Page 32 बलभद्र जैन, जैन धर्म का सरल परिचय, पृष्ठ 72 10. स्याद्वादमंजरी सं. डा. जगदीशचन्द्र जैनेन, प्रस्तावना पृष्ठ 22 11. Thilly History of Philosophy Page 467. 12. Appearance and Reality,Page487 13. Natureof Truth Ch.3,Page 92-3 14. मुनि नगराज, जैन दर्शन और आधुनिक विज्ञान, पृष्ठ 9 15. The Principals of Psychology, Vol. 1 Ch.20 Page 291 16. Present Philosophical Tendencies, Chapter on Realism. 17. Introduction to Logic, Page 172-3. 18. In the Quert of Ideal, Page 21 19. डॉ. रामजीसिंह-जैन विद्या एवं प्राकृत, पृष्ठ 20, 20. वही 21. स्याद्वादमंजरी, प्रस्तावना पृष्ठ 11, 22. वही 23. हेमचन्द्राचार्य-अन्ययोग व्यवच्छेदिका, पद्य 29 24. स्याद्वाद मंजरी, पृष्ठ 293, 25. वही, पृष्ठ 226, 26. वही, पृष्ठ 240-241 27. हेमचन्द्राचार्य अन्ययोग-32 28. डॉ. रामधारीसिंह दिनकर, संस्कृति के चार अध्याय, पृष्ठ 137 29. पुरूषार्थ सिद्धध्युपाय-2 अन्य पुस्तकें 1. भारतीय दर्शन-डॉ. बलदेव उपाध्याय 2. भारतीय दर्शन-डॉ. राधाकृष्णन 3. भारतीय दर्शन-वाचस्पति गैरोला . 4. जैन दर्शन-प्रो. महेन्द्र कु. न्यायचार्य 5. जैन धर्म- पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री ___ शा.कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय, इन्दौर (म.प्र.) 28.0 8 3 तुलसी प्रज्ञा अंक 110 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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