Book Title: Tulsi Prajna 2000 10
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 64
________________ ग्रन्थों में पार्श्व का विवेचन किया गया है। पार्श्व का विवेचन करने वाले सभी ग्रन्थ उनकी जन्मस्थली वाराणसी होने का उल्लेख करते हैं।' यह भारत की 10 प्रमुख राजधानियों में से एक थी। 2 भगवान पार्श्व का जन्म ई. पू. 849 में हुआ था। जैन ग्रंथों में यह उल्लिखित है कि बाइसवें तीर्थंकर नेमिनाथ के बाद 83750 वर्ष बीतने पर पार्श्व उत्पन्न हुए तथा पार्श्व के जन्म के 250 वर्ष बीतने पर महावीर का जन्म हुआ।' तीर्थंकरों के काल में अन्तर के संदर्भ का उल्लेख तिलोयपण्णत्ती के अतिरिक्त सभी जैनग्रन्थों में एक जैसा ही किया गया है । तिलोयपण्णत्ती' में नेमिनाथ और पार्श्व के कालमान में अन्तर 84650 वर्ष दिया हुआ है । इस प्रकार 900 वर्ष का अन्तर विद्वानों के लिए अनुसंधान का विषय बन जाता है। भगवान् पार्श्व की आयु 100 वर्ष थी, यह उल्लेख सभी ग्रन्थों में एक जैसा ही प्राप्त होता है । ' भगवान् पार्श्व की जन्मतिथि में एक दिन का अन्तर जैन ग्रन्थों में मिलता है। कल्पसूत्र', चउप्पनमहापुरिसचरियं', त्रिषष्टि शलाकापुरुषचरितं ' तथा सिरिपासणाहचरियं ग्रन्थों में पार्श्व का जन्म पौषकृष्णा दशमी की मध्यरात्रि को विशाखा नक्षत्र में होने का उल्लेख है। जबकि तिलोयपण्णत्ती" उत्तरपुराण, पद्मपुराण 3 आदि ग्रन्थों के आधार पर पार्श्व का जन्म पौषकृष्णा एकादशी को अनिलयोग / विशाखा नक्षत्र में हुआ था। एक दिन का अन्तर यद्यपि अधिक या विशेष महत्त्वपूर्ण इसलिए नहीं कहा जा सकता कि पौष कृष्णा दशमी की मध्यरात्रि के तुरन्त बाद से ही एकादशी प्रारम्भ हो जाना संभव है। और सम्भवतः दशमी की मध्यरात्रि को प्रारम्भ होने वाले नक्षत्र का कालमान एकादशी प्रारम्भ होने तक जा सकता है। किन्तु अलग-अलग तिथियों का उल्लेख विद्वानों के लिए चिन्तन हेतु अवसर उपस्थित कर देता है। भगवान् पार्श्व के नामकरण को लेकर भी भिन्न-भिन्न संदर्भ जैनग्रन्थों में प्राप्त होते हैं। आवश्यक नियुक्ति 4, त्रिषष्टिश्लाकापुरुषचरित' सिरिपासणाहचरियं" आदि ग्रन्थों पार्श्व की माता के द्वारा नामकरण का उल्लेख मिलता है। इन ग्रन्थों में पार्श्व की माता के द्वारा गर्भकाल में अंधेरी रात्रि के समय सर्प को देखे जाने से उनके जन्म पश्चात् माता द्वारा घटना का स्मरण होने पर पार्श्व नाम दिया गया। जबकि उत्तरपुराण" और पद्मकीर्तिकृत पासणाहचरिउ'' में इन्द्र ने बालक का नाम 'पार्श्व' रखा। अतः नामकरण - कर्त्ता के प्रसंग में भी भिन्न-भिन्न संदर्भ प्राप्त होते हैं। माता पार्श्व के वैयक्तिक जीवन का विवेचन अनेक ग्रन्थों में किया गया है। उनके -पिता के नामों में भी भिन्न-भिन्न नाम प्रयुक्त हुए हैं। पार्श्व के पिता का नाम अश्वसेन और माता का नाम वामादेवी कुछ कृतियों में प्राप्त होता है। " जबकि उत्तरपुराण में विश्वसेन और ब्राह्मी नाम पिता-माता के लिए प्रयुक्त हुए हैं। 20 पद्मकीर्तिकृत पासणाहचरिउ" तथा रइधूकृत पासणाहचरियं में पिता का नाम हयसेन दिया गया है, जबकि माता का नाम वही ब्राह्मीदेवी ही प्रयुक्त हुआ है। इसी प्रकार तिलोयपण्णत्ती 22 में तुलसी प्रज्ञा अंक 110 58 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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