Book Title: Tulsi Prajna 2000 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 18
________________ तुलसी प्रज्ञा अंक 108 नई सदी की शुरूआत में राष्ट्रीय स्तर पर संगोष्ठी, वार्ता, चिन्तन, योजना, निर्णय आदि अनेक प्रयत्न हो रहे हैं जिन पर आज राष्ट्र की आंखें टिकी हैं। हमारे सामने भगवान् महावीर की २६सौ वीं जन्म जयन्ती का प्रेरक अवसर भी है। प्रतीक्षा है राष्ट्रीय हितों में ठोस, सटीक, सामयिक समाधानों की और रचनात्मक निर्णयों की। हम भी इस दिशा में कृतसंकल्पी हों। हमारे पास जैन तीर्थंकरों की वाणी है। आचार्यों के प्रवचन हैं। पुरखों के प्रौढ़ अनुभव हैं। अनेकान्तिक जीवन-शैली है। सापेक्ष चिन्तन है। पुरुषार्थी प्रयत्न है । समन्वयात्मक नीति है। रचनात्मक और ईमानदार कार्य प्रणाली है। सबके हितों में स्वयं के सुख को देखने का अभ्यास है, अतः हम कुछ ऐसा करें जिससे विनाश के बारूद पर खड़ी राष्ट्रीयता को सुरक्षा दे सकें। बुराइयां मिटाने का दावा भले न कर सकें मगर बुरा न बनने की प्रतिज्ञा तो कर ही सकते हैं। यही हमारा दायित्व, कर्त्तव्य, सोच, संकल्प राष्ट्र के प्रति सार्थक योगदान होगा। यदि अभी कुछ नहीं हुआ तो फिर कब होगा? इस प्रश्न का उत्तर भी हमें ही तलाशना होगा। मुमुक्षु डॉ. शान्ता जैन जैन विश्व भारती संस्थान, (मान्य विश्वविद्यालय) लाडनूं-341 306 12 m NOWINNITTIVITY । प्रज्ञा अंक 108 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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