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जगत और सृष्टि की व्याख्या के द्वारा जिसका विश्लेषण हुआ है, बुद्धि के द्वारा जिसका व्यवसाय या निर्णय हुआ है। बस एक सीमा के बाद आगे जायें तो एक औत्पत्तिकी बुद्धि के द्वारा कुछ नये रहस्यों को भी हमने खोजा है।
उत्पाद और व्यय के बारे में विचार करते हैं तो विश्व के स्वरूप को समझने या सृष्टि की व्याख्या करने में बहुत सुविधा हो जाती है। एक प्रश्न हुआ-अस्थित्तं अस्थित्ते परिणमइ? नत्थित्तं नत्थित्ते परिणमइ? क्या अस्तित्व का अस्तित्व में परिणमन होता है? क्या नास्तित्व का नास्तित्व में परिणमन होता है? दूसरा प्रश्न आया-अस्थित्तं अस्थित्ते गमणिज्जं नत्थित्तं नत्थित्ते गमणिज्जं क्या अस्तित्व अस्तित्व में गमनीय होता है, क्या नास्तित्व नास्तित्व में गमनीय होता है? दो प्रश्न हैं। अस्तित्व का अस्तित्व में परिणमन, उत्पाद उत्पाद पैदा करता है। नास्तित्व का नास्तित्व में परिणमन, विगमन विगमन पैदा करता है। एक श्रृंखला संतति की परम्परा चलती है, एक कोशिका जैसे दूसरी कोशिका को पैदा करती है, एक जीव दूसरे जीव को पैदा करता है वैसे भी एक पर्याय का क्रम है कि उत्पाद से उत्पाद का क्रम चलता है और व्यय से व्यय का क्रम चलता है। यह होता रहता है। चक्र है उत्पत्ति का और विलय का। कैसे होता है? कौन करता है? यह प्रश्न आता है। हो रहा है, हम देख रहे हैं। आकाश में बादल मंडरा रहे हैं और हम देख रहे हैं। कौन कर रहा है? कुम्हार घड़ा बनाता है, सुनार गहना बनाता है या आज बहुत सारे उपकरण बनते हैं। बड़े-बड़े कारखाने चलते हैं। वहां तो आदमी काम कर रहा है या यंत्र भी काम कर रहा है, इसलिए प्रश्न नहीं उठता। आज एक नया प्रश्न जरूर सामने आ गया कि कम्प्यूटर भी बहुत कुछ कर रहा है। रोबो भी बहुत कर रहा है। यह एक नया प्रश्न होगा। पहले तो मनुष्य ही करता था। अब अचेतन भी हाथ बटाने लगा है। जो अज्ञात है, वहाँ प्रश्न है कि कौन कर रहा है? यह वर्षा कौन कर रहा है? बादल कैसे मंडरा रहे हैं? अब शायद विज्ञान के जमाने में यह भी कोई जटिल बात नहीं रही है। किन्तु कर्ता नहीं, स्वभाव से हो रहा है, परिणमन हो रहा है। परिणमन कैसे होता है? इसके उत्तर में बतलाया गया
प्रयोग से भी होता है, मनुष्य के प्रयत्न से भी होता है और स्वभाव से भी कुछ बातें होती हैं।
वैशेषिक दर्शन में सृष्टि को प्रायोगिक माना गया है कि कोई तो है, इसलिए प्रयोग से हो रहा है । जैन दर्शन ने केवल प्रयोग से नहीं माना, उसके अनुसार कुछ प्रयोग से होते हैं
और कुछ स्वभाव से होते हैं। प्रयोग से भी होते हैं तो वे जीव और पुद्गल के प्रयोग से होते हैं। इसके सिवाय तीसरी कोई शक्ति प्रयोग करने वाली नहीं है। स्वभाव से भी होता है, बहुत सारा परिणमन स्वभाव से होता है। परिणमन के दो रूप हमारे सामने आ गये-एक परिणमन
तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2000
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