Book Title: Tulsi Prajna 2000 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 35
________________ भू-भ्रमण भ्रान्ति और समाधान पर दिखना सम्भव है जबकि पृथ्वी तो नारंगी के समान घूमती मानी है उस पर भी साढ़े तेईस डिग्री घूमती मानी है फिर तिरछी घूमती पृथ्वी पर तारा कितनी दूरी पर ही क्यों न हो, एक स्थल पर स्थिर नहीं दिख सकता और पृथ्वी की तिरछी घूम यहां तक है कि छह महीने में उल्टी दक्षिण ओर से उत्तर दिशा को ही जाती है, इसी कारण उत्तरी दक्षिणी पोलो में छहछह महीने की रात्रि मानी गई है, ऐसी तिरछी घूमने से ध्रुवतारा सारी रात एक ही स्थल पर दिखता है, इससे यह निराधार होता है कि पृथ्वी घूमती नहीं है। जिस प्रकार ध्रुवतारा स्थिर है, उसी प्रकार पृथ्वी भी स्थिर है। जो ध्रुवतारा असंख्य मील दूर होने पर एक स्थान पर दिखता है तो एक प्रश्न उठता है कि ध्रुवतारा सूर्य के परिवार में है या नहीं? यदि है तो सूर्य जो आधे घण्टे में लिरा की ओर दस हजार मील दौड़ा जा रहा है वह भी दौड़ेगा, फिर उसका ध्रुव नाम कहना और एक स्थान पर स्थिर बताना भ्रान्ति है। यदि वह स्थिर नहीं है तो सूर्य के साथ पृथ्वी जो सूर्य के परिवार में है, उसके साथ दौड़ती जाएगी फिर उस ध्रुवतारे का पृथ्वी से एक स्थान से दिखना असम्भव है। उपर्युक्त संक्षिप्त कथ्य सार के आधार पर यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि पृथ्वी न गोल है, न चलती है, न दौड़ती है और न घूमती ही है। वह स्थिर अचला है जो जैन आगमानुकूल तो है ही, साथ ही परम वैज्ञानिक तथा तर्कसंगत भी है। सन्दर्भ- . १. पी.एल. ज्योग्राफी भाग २, सम्पादक-पं. प्यारेलाल जैन, पृष्ठ ८, सन् १९२० २. सूर्य-प्रज्ञप्ति सूत्र, पहला पाहुड़ा, सूत्र ९,१० ३. भगवती वृत्ति शतक, ५ उ. १ ४. नहि प्रत्यक्षतो भूमेभ्रमणनिर्णीतिरस्ति, स्थिरतयैवानुभवात् तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, अध्याय ४, आचार्य विद्यानन्दि। ५. (क) पृथ्वीवितस्ये-ऋग्वेद, १-७२-९ (ख) तामिर्याति स्वयुक्तिभिः-ऋग्वेद, १-५०-९ ६. (क) येनद्यौरुग्रा पृथ्वी च दृढ़ायेनस्वः-यजुर्वेद, ३२वाँ अध्याय, मन्त्र ६, (ख) यन्क्रन्दसी अवसातस्तभोन अभ्यक्षेतामनसारेजमाने। __यजुर्वेद, ३२वाँ अध्याय, मन्त्र (ग) ध्रुवा, स्थिरा, धरित्री-यजुर्वेद, १४वाँ अध्याय मन्त्र २२ (घ) हिरण्मयेन सविता रथेन देवोयाति भुवनानिपश्यन्।-यजुर्वेद, ३३वाँ अध्याय, मन्त्र ४३ ७. (क) पृथ्वी ध्रुवा--- अथर्ववेद, ६-८९-९ तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2000 INRI TWITRINTIIIIIIIIIIIIIV 29 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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