Book Title: Tulsi Prajna 2000 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 52
________________ तुलसी प्रज्ञा अंक 108 रचना की है। पंडित जवाहरलाल शास्त्री ने इस ग्रंथ की अपूर्ण पाण्डुलिपि देखी है। यह समस्त जानकारी शरच्चन्द्र घोषाल ने प्रकट की है। गोमटेस थुदि : ऐसा अनुमान किया जाता है कि यह रचना भी नेमिचन्द्र की हो सकती है। दार्शनिक : गोम्मटसार और लब्धिसार दोनों से प्रमाणित होता है कि नेमिचन्द्र एक उच्च कोटि के दार्शनिक थे। शरच्चन्द्र घोषाल ने गोम्मटसार के संबंध में लिखा है "This work, in very brief limits, comprises most of the important tenets of Jaina Philosophy.' गोम्मटसार में गुणस्थान, जीवसमास, पर्याप्ति, प्राण, संज्ञा, मार्गणा, उपयोग, प्रकृतिसमुत्कीर्तन, बन्धोदयसत्व, सत्वस्थानभंग, त्रिचूलिका, स्थानसमुत्कीर्तन, भावचूलिका, त्रिकरणचूलिका और कर्मस्थितिरचना बिन्दुओं पर दार्शनिक प्ररूपणा की गई हैं। प्रथमोपशम सम्यग्दर्शन, क्षायिक सम्यक्त्व, देशचारित्रलब्धि, संकलसंयमलब्धि, औपशमिकचारित्रलब्धि और क्षपिकचारित्रलब्धि बिन्दुओं पर लब्धिसार (क्षपणासारगर्भित) में जैन दर्शन की विवेचना प्राप्त होती है। गणितज्ञ : नेमिचन्द्र ने सैद्धान्तिक तथ्यों के स्पष्टीकरण हेतु गणित का साधन के रूप में उपयोग किया है। इनके ग्रंथों में गणित सर्वत्र प्रयुक्त रूप में प्राप्त होता है। मात्र गोम्मटसार (जीवकाण्ड) की गाथा नं. 35 से 44 तक शुद्ध रूप में प्राप्त होती है। इनके ग्रंथों में मुख्य रूप से भिन्न-भिन्न प्रकार की संख्याएं, विभिन्न प्रकार से उनका प्रयोग, घातांक एवं लघुगुणक के नियम, समातंर और गुणोत्तर श्रेणी के सूत्र, ठोस ज्यामितीय सूत्र, पाई का मान, अनुक्रम, अपसारी अनुक्रम, क्रमचय-संचय, संचय-सिद्धान्त, समुच्चय-सिद्धान्त, निकाय-सिद्धान्त, अनन्त के प्रकार, अनन्त का गणित, अलौकिक गणित आदि प्राप्त होता है। आधुनिक गणित जगत से गणितज्ञ के रूप में इनका विधिवत परिचय विभूतिभूषण दत्त के शोधपत्र (ई. 1935) 'Mathematics of Nemicandra' से माना जाना चाहिए। इसी शोध पत्र में दत्त ने लिखा है " It is True that most of those results were not new but were known to the anterior Hindu mathematicians. But if we remember that Nemicandra was essentially a philosopher and a saint, the so much knowledge of an abstruse secular science, as displayed by him, will appear very commendable. Some of his results in combinations we have not so far found in any Hindu work before the fourteenth century of the Christian era." नेमीचन्द्र के गणितीय अवदान को विभूतिभूषण दत्त, नेमिचन्द्र शास्त्री, लक्ष्मीचन्द्र 46 AIIMINS SNILIONINNINITITIV तुलसी प्रज्ञा अंक 108 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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