Book Title: Tulsi Prajna 2000 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 55
________________ आचार्य नेमिचन्द्र एवं उनके टीकाकार (1918 ई.) पर टीकाओं का संपादन किया है । त्रिलोकसार पर इनकी टीका 1920 में मुम्बई से भी प्रकाशित हुई है। ब्र. दौलतरामजी : इन्होंने गोम्मटसार पर भाषा पद्यबद्ध रचना की है जो अप्रकाशित है। नागपुर प्रति : श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम, अगास द्वारा प्रकाशित लब्धिसार की तृतीयावृत्ति के पृष्ठ क्रं. 41 से ज्ञात होता है कि नागपुर के सेनगण मन्दिर में गोम्मटसार (कर्मकाण्ड) पर टीका की एक हस्तलिखित प्रति उपलब्ध है। बैरिष्टर जुगमन्दिरदासजी : गोम्मटसार पर इनकी अंग्रेजी टीका है, जो प्रकाशित है। नेमिचन्द्र वकील : उस्मानाबाद के इस टीकाकार ने मराठी में एक सुन्दर रचना की है, जो प्रकाशित है। पं. खूबचन्द्र जैन : 'बालबोधिनी' नामवाली इनकी टीका का आधार केशववर्णी वृत्ति, मन्दप्रबोधिनी और सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका है, जो हिन्दी में है तथा वि.सं. 1972 में प्रकाशित है। इन्होंने हिन्दी पद्यानुवाद भी किया है जो इस टीका में सम्मिलित नहीं है । पं. फूलचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्री : इन्होंने टोडरमल्लजीकृत बड़ी टीका के आधार से लब्धिसार (क्षपणासारगर्भित) का अमूल्य सम्पादन हिन्दी में किया है जो वि.सं. 1973 में प्रकाशित हुआ। जी.एल. जैन एवं एस. एल. जैन : 1919 ई. में गोम्मटसार पर मन्दप्रबोधिनी, जीवतत्वप्रदीपिका और सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका के आधार पर टीका संपादित की है। इसके साथ पं. टोडरमल द्वारा रचित अर्थसंदृष्टि अधिकार प्रकाशित है। जे.एल. जैनी : इन्दौर के इस मुख्य न्यायाधीश ने गोम्मटसार (जीवकाण्ड) तथा गोम्मटसार ( कर्मकाण्ड ) भाग - 1 (गाथा नं. 397 तक) पर 1927 में अंग्रेजी में टीका लिखी है जो जैन गणित में शोधार्थियों के लिए विशेष उपयोगी प्रतीत होती हैं । आर्यिका विशुद्धमति : इन्होंने त्रिलोकसार पर टीका लिखी है जो 1976 ई. में आर.सी. मुख्तार और चेतनप्रकाश पाटनी द्वारा संपादित है । आर. सी. मुख्तार : इन्होंने लब्धिसार ( क्षपणासार गर्भित) का सम्पादन किया है। ए.एन. उपाध्ये एवं के. सी. शास्त्री : इन्होंने गोम्मटसार का सम्पादन किया है जिसमें जीवकाण्ड का 1978 ई. में तथा कर्मकाण्ड का 1980 ई. में प्रकाशन हुआ है। लक्ष्मीचन्द्र जैन : ऐसा ज्ञात होता हैं कि प्रथम कोटि के इस जैन गणितज्ञ ने त्रिलोकसार का हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में अनुवाद किया है, जो सम्पादनाधीन है। तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2000 Jain Education International For Private & Personal Use Only 49 www.jainelibrary.org

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