Book Title: Tulsi Prajna 1990 03 Author(s): Nathmal Tatia Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 5
________________ आचार दशा की आठवीं दशा का नाम पर्युषण कल्प है । परि उपसर्ग पूर्वक वस् धातु से अन् प्रत्यय लगाकर पर्युषण शब्द निर्मित हुआ है। पर्युषण का अर्थ आत्मा का नैकट्य या अपने स्वभाव में उपस्थित रहना है । नियुक्तिकार द्वितीय भद्रबाहु ने निरुक्त सहित इसके नौ पर्यायवाची नामों का विश्लेषण किया है। वे नाम इस प्रकार हैं कल्पसूत्र : एक पर्यवेक्षण [] साध्वी अशोकश्री १. पर्याय व्यवस्था २. पर्युपशमना ३. प्राकृतिक ४ परिवसना ५. पर्युषण ६. वर्षावास ७. प्रथम समवसरण ८ स्थापना ६ ज्येष्ठावग्रह' । ये शब्द व्यौत्पत्तिक वैचित्र्य होने पर भी पर्युषण अर्थ से अनुस्यूत होकर विभिन्न परम्पराओं और मर्यादाओं के प्रतीक हैं । १. पर्याय व्यवस्था उस युग में दीक्षा पर्याय की ज्येष्ठता और वरिष्ठता का मानक पर्युषणकाल ही सम्मत था। जिसके पर्युषण संख्या अधिक होती वह दीक्षा पर्याय में ज्येष्ठ और अतिरिक्त कनिष्ठ | इसलिए यह वर्तमान के नाम से भी प्रचलित था । -- २. पर्युपशमना ऋतुबद्धकाल की अपेक्षा वर्षावास की प्रवृत्तियां कुछ भिन्न होती हैं इसलिए इसकी दूसरी अभिधा पर्यंपशमना है । ३. प्राकृतिक गृहस्थ वर्ग और श्रमण वर्ग दोनों के लिए ही यह विशेष आराधनीय पर्व होता है, इसलिए यह एक प्राकृतिक पर्व है । ४. परिवसना - इस समय श्रमण अन्य अपेक्षाओं को गौण करके आत्मा की निकटता से उपासना करता है, इसलिए इसकी संज्ञा परिवसना है । ५. पर्युषण - इस समय ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना की जाती है । इसलिए इसकी एक अभिधा पर्युषण है । Jain Education International ६. वर्षावास मुनि वर्ग चार मास तक एक ही स्थान पर निवास करता है इसलिए यह वर्षावास के नाम से प्रसिद्ध है | खण्ड १५, अंक ४, (मार्च, १० ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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