________________
हो गयी है । तब मुक्ति का एक ही पथ है - वह है जैन धर्म की मूलभूत मानवीय नैतिकता का । वरतानिया के एक सर्वेक्षण में बताया गया है कि १८ और २५ वर्ष की आयु के अधिकांश युवा ( विद्यार्थी) अपच, क्रोध, वैफल्य, विभिन्न व्याधियों के साथ-साथ जिजीविषा खो बैठे हैं, उन्हें न घर सुहाता है और न बाहर । वे पूर्णत: निस्संग और एकाकी हैं -- असामान्य व असंतुलित माता-पिता और भाई-बहिन के प्रति उन्हें न प्रेम है और न लगाव | इस ग्लानि का उपचार, इन कषायों का अंत, इस जिजीविषा से मुक्ति और दिशाहीनता में मार्ग प्रशस्त करने के लिए धर्म ही एकमात्र संबल है । बर्नड शा ने अपने संस्मरण में यही कहा है । धर्म ही हमें भय और दुश्चिन्ता से मुक्त करेगा । जैन शासन इसका समर्थ और सबल आलोक है । रवीन्द्रनाथ की एक कविता आराध्य के प्रति है, जो आज के मनुष्य की गूढ़ता व गतिशीलता का ज्वलंत चित्रण है
तुमि जोतो मार दिये छो से मार,
करिया दिये छो सोझा ।
मार
आमि जोतो तुलेछि, सकलइ होयेछे बोझा ।
ए बोझा आमार नामाओ बंधु, नामामो, माररे वेगेति ठेलिया चलेछि, एइ यात्रा आभार थामाओ, बंधु थामाओ ।
जैन विश्व भारती, लाडनूं ( राज० )
आगम- साहित्य धारकों से एक निवेदन
अनुभव हुआ है कि संस्था द्वारा प्रकाशित आगम - साहित्य के अध्ययन के प्रति श्रावक समाज की रूचि अपेक्षाकृत कम है या फिर यह विषय सहज ग्राह्य नहीं है । ऐसी स्थिति में पाठकों के लिए रुचिकर योग, कथा एवं जीवन-विज्ञान साहित्य उपलब्ध कराने की एक योजना प्रसारित की गई है । इसके अन्तर्गत आपके पास जो आगम- साहित्य है उसके बदले में आप मूल्यानुसार योग साहित्य या अन्य साहित्य संस्था से प्राप्त कर सकते हैं ।
खण्ड १५, अंक ४ (मार्च, १० )
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
श्रीचन्द बैंगानी मन्त्री
४१
www.jainelibrary.org