Book Title: Tulsi Prajna 1990 03
Author(s): Nathmal Tatia
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 11
________________ संस्कृत साहित्य का आधुनिक साहित्य के सन्दर्भ में मूल्यांकन - साध्वी निर्वाणश्री मानव एक चिंतनशील प्राणी है। उसने चिंतन को भाषा और लिपि का जो परिवेष दिया, वही साहित्य कहलाया। भाषा और वर्ण्यविषय के आधार पर साहित्य की अलग-अलग पहचान बनी । संस्कृत साहित्य भाषा से उद्भूत एक अभिधा है । इसी प्रकार अन्य भाषाओं के आधार पर भी अलग-अलग साहित्य बना। आधुनिक साहित्य से हमारा तात्पर्य हिंदी साहित्य से है क्योंकि हमारी राष्ट्रीय भाषा यही है। संस्कृत साहित्य में अपार ज्ञान राशि है। उसका प्रभाव प्राय: भारत की सभी प्रांतीय भाषाओं में ही नहीं, नेपाली जेसी विदेशी भाषाओं में भी परिलक्षित होता है। संस्कृत साहित्य के संदर्भ में यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि वह हिंदी साहित्य का जनक है। दोनों भाषाओं के साहित्य के समीक्षात्मक अध्ययन से यह तथ्य बहुत स्पष्ट रूप में उजागर होता है । वर्ण्यवस्तु और शैली दोनों ने हिंदी साहित्य को प्रभावित किया है । इसे हम पारिभाषिक शब्दावलि में सिद्धांतमूलक और आकृतिमूलक प्रभाव भी कह सकते हैं। धर्म, दर्शन, विज्ञान, इतिहास, गणित, ज्योतिष, आयुर्वेद, व्याकरण, छंद, अलंकार आदि तमाम विषयों पर संस्कृत भाषा में पर्याप्त साहित्य उपलब्ध है। आधुनिक साहित्य के संदर्भ में संस्कृत साहित्य का मूल्यांकन करने के लिए हमें हिंदी साहित्य को चार भागों में विभक्त करना होगा। आदिकाल (ई. १२४१-१३७५) इस समय में रचित साहित्य 'रासो' के नाम से प्रख्यात हुआ। विद्यापनि द्वारा रचित 'पृथ्वीराज रासो' उनमें प्रमुख है। इसकी भाषा संस्कृत बहुल है । उसी की तरह सरसता एवं सौष्ठव है। कथा का नियोजन एवं घटना विस्तार भी संस्कृत से बहुत कुछ मिलता-जुलता है। इसमें समाविष्ट शुक-शुकी के संवाद में तो बाण की कादम्बरी की छाया स्पष्ट परिलक्षित होती है। शैली और विषय की दृष्टि से यह कृति संस्कृत कवि जयदेव के गीत-गोविंद' से बहुत प्रभावित है। इस काल का सिद्धसाहित्य व वाममार्गी साहित्य बौद्धदर्शन, सांख्य-योग-दर्शन एवं लोक साहित्य से अनुप्राणित है । आदिकाल की रचनाओं को संस्कृत साहित्य की अपेक्षा अपरिष्कृत कहा जा सकता है । संस्कृत साहित्य के आदिकालीन ग्रंथ अनुभव प्रधान हैं, जबकि हिंदी खण्ड १५, अंक ४ (मार्च, १०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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