Book Title: Tulsi Prajna 1990 03
Author(s): Nathmal Tatia
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 21
________________ पुनर्जन्म-प्राचीन दार्शनिकों की दृष्टि में । कु० कमला जोशी पुनर्जन्म का अर्थ है-मरणोपरान्त चेतना का पुनः नए शरीर, इन्द्रिय, सुख-दुःख इत्यादि को प्राप्त करना। यह अत्यन्त रहस्यमय एवं विवादास्पद विषय है। यदि चेतना पुनः नए शरीरादि को प्राप्त करती है तो मृत्यु क्या है ? भारतीय चिन्तकों ने पुनर्जन्म पर गहन मनन एवं सूक्ष्म विश्लेषणपरक वैचारिक मंथन के निष्कर्षस्वरूप (चार्वाक को छोड़कर) स्वीकार किया कि मृत्योपरान्त चेतना अवश्य रहती है। अतः कह सकते हैं कि लोग जिसे मृत्यु कहते हैं वह चेतना की नहीं देहेन्द्रियादि की होती है । दोनों का वियोग मरण है। चैतन्य (आत्मा) मरणोपरान्त पुनः नवीन शरीर को ग्रहण करता है, जैसे-हम पुराने कपड़ों को छोड़कर नए कपड़े पहनते हैं। प्रस्तुत लेख में पुनर्जन्म के सम्बन्ध में प्रमुख भारतीय, पाश्चात्य दार्शनिकों एवं यथास्थान आधुनिक वैज्ञानिकों के विचारों एवं अनुभूतियों को स्पष्ट करते हुए पुनर्जन्म की प्राचीन धारणामों पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है। भारतीय अध्यात्म जगत् में पुनर्जन्म, आत्मा की अमरता, कर्मफल की अवश्यभोग्यता, मोक्ष इत्यादि परस्पर सम्बद्ध हैं। बन्धगत होने पर जीव एक देहान्त के उपरान्त कर्मवश फलभोग हेतु दूसरी देह में जाता रहता है। देहान्तर की प्राप्ति करते रहना (मोक्ष तक) ही पुनर्जन्म है । बन्धमुक्त होने तक जीव कर्मफलानुसार एक जन्म में प्राप्त देहादि में सुख-दुःख भोगता है एवं रागद्वेषादि कषाय, क्लेशादि से प्रेरित होकर पुनः कर्म करने से एक देहेन्द्रियादि के नाश के बाद दूसरी योनि, देह, जाति, नाम, वंश, सौभाग्य, दुर्भाग्यादि पाता है।' यह परम्परा चलती रहती है। वर्तमान जीवन से पहले भी अचेतन देहादि में स्थित देही का अस्तित्व था और भविष्य में भी रहेगा। भूत, वर्तमान एवं भविष्य जीवन का अभिप्राय संसारी जीवों के अनेक भवों से है । संहिताओं में भी इस तरह के विचार मिलते हैं कि पापी दूसरे लोक में कष्ट पाता है और पुण्यकर्ता उच्च भौतिक सुख भोगता है। "ऋत" (जीवों को पापपुण्यानुसार कर्मफल देने वाला तत्त्व) इस व्यवस्था का नियामक है। अगले जन्म के अच्छे या बुरे होने के विषय में उपनिषदों का कहना है कि संकल्पपूर्वक किए गए शुभाशुभ कर्मों के आधार पर जीव अच्छे-बुरे जन्म पाता है। इनमें देवयान एवं पितृयान से प्रयाण करने वाले (कर्मबद्ध) जीवों के पुनर्जन्म का उल्लेख भी मिलता है। सत्त्वगुण शोधछात्रा (संस्कृत विभाग), कुमांऊ विश्वविद्यालय, नैनीताल (यू० पी०) खण्ड १५, अंक ४ (मार्च, ६०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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