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४७. संपा० मुनि विशालविजय, प्र० विजय धर्म सूरि जैन ग्रंथमाला, छोटा सराफा, उज्जैन
वि० सं० १९६५।
__ प्रस्तावना में संपादक ने लिखा है-"एतेषु च स्तवनेषु क्वापि कर्तृनाम्नो निर्देशात् प्रतौ च लेखकसमस्यानुल्लेखात् "केन कदा स्तवनानीमानि विरचितानि" इति सम्यग विनिर्णतुं न शक्येत, तथापि एतानि स्तवनानि विक्रमीयपंचदशाधिक
पन्चदशशतकात् (१५१५) प्राचीनानीत्यमुमीयते, प्र० पृ० ८ । ४८. जैन स्तोत्र सन्दोह, भाग-१-२, सम्पादक-मुनि चतुरविजय, प्रकाशक-साराभाई
मणिलाल नवाब, प्रथम भाग । ४६. अखिल भारतीय दिगम्बर जैन शास्त्री परिषद्, बड़ौत (मेरठ), सन्-१९८३ ।
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(शेषांश पृष्ठ २० का) १०. प्रवचनसार, अंग्रेजी प्रस्तावना, ए० एन० उपाध्याय, पृ० ६६, पंचाध्यायी, २१५ ११. विशेषावश्यक भाष्य, गाथा-१७७३-८ १२. गीता-४११७, योगसूत्र २।१२ भाष्य सहित द्रष्टव्य १३. जनों के पुनर्जन्म सम्बन्धी विचारों हेतु द्रष्टव्य-श्रीमद्राजचन्द्र ग्रन्थ (राजचन्द्र के
विचार) १४. लभ्यमाने फले दृष्टे नादृष्टफलकल्पना ।—सर्वदर्शनसंग्रह (जैमिनी दर्शन) १५. संदिग्धेऽपि परे लोके त्याज्यमेवाशुभं बुधैः ।
यदि नास्ति ततः किं स्यादस्ति चेन्नास्तिको हतः ॥-आचारांग सूत्र, टीका १६. द्रष्टव्य-पाश्चात्य दर्शनों का इतिहास । 17. We are not so much strangers or intruders as we at first
thought.--Mysterious Universe, P. 138 18. A Conclusion which suggests ... 'the possibility of conscious
ness after death....the flame is distinct from the log of wood which serves it temporality as fuel.
—जैन दर्शन और आधुनिक विज्ञान-नगराज, पृ० १०१ में उद्धृत 19. The soul of man passes between death and rebirth in this world as he passes through dreams in the night between day and day.
-Sir Oliver Lodge, वही, पृ० १०१ में उद्धृत
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तुलसी प्रज्ञा
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