Book Title: Tulsi Prajna 1990 03
Author(s): Nathmal Tatia
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 31
________________ १०८ का माहात्म्य - अभय प्रकाश जैन* योग की उपयोगिता जैसे-जैसे बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे इस विषय में जिज्ञासाएं भी बढ़ती जा रही हैं । योग की चर्चा में रहस्य और चमत्कार का सवोपरि महत्त्व है। हम शरीरधारी हैं। हमारे दो शरीर स्थूल और सूक्ष्म हैं। हमारा अस्थि-चर्ममय शरीर स्थूल है । तैजस और कर्म ये दो सूक्ष्म शरीर हैं। हमारी सक्रियता, तेजस्विता और पाचन का मूल तैजस शरीर है। वह स्थूल शरीर के भीतर रहकर दीप्ति या तेज उत्पन्न करता रहता है । साधना के द्वारा उसकी शक्ति विकसित की जाती है । यहां १०८ की संख्या के चमत्कार पर मंथन का प्रयास है । हिन्दू शास्त्रों में १०८ की संख्या का बड़ा महत्त्व है। पूजापाठ व जप के लिए १०८ दानों की माला पवित्र मानी जाती है । भक्त, साधक, तंत्र-साधक, उपासक, पौराणिक, मुनि, उपाध्याय, तेजोलेश्या वाले महात्मा इस संख्या को मंगलमय मानते हैं। विरक्त साधु, मुनि, योगी, ' ब्रह्मचारी, तेजोलेश्या वाले महापुरुष व्यक्तियों का चित्त नम्र और ऋजु हो जाता है, उनके मन में कोई कुतूहल नहीं होता। उनकी इन्द्रियां सहज शांत हो जाती हैं । वे धर्म का अतिक्रमण नहीं करते', इसलिए इनको भी १०८ से विभूषित और संबोधित .. किया जाता है। अन्य स्थानों पर भी इस संख्या को शुभ चिह्न व रहस्य संज्ञा के रूप में काम में लाया जाता है। उपनिषदों की संख्या भी १०८ ही मानी गई है जिसके नाम मुक्तिकोपनिषद् में दिए गए हैं। इस प्रकार १०८ की संख्या में अवश्य कोई गूढ़ संकेत छिपा हुआ है। भारतीय धर्मग्रन्थों का सबसे प्रथम और सबका सारभूत शब्द ब्रह्म है । उपनिषद्कारों ने उसकी महिमा गायी है। यही जानने योग्य तत्त्व है, इसे जान लेने के पश्चात सब कुछ ज्ञात हो जाता है । यह शब्द निराकार परमात्मा का बोधक है। यही उपास्य है, यही उच्चार्य है । १०८ की संख्या उसी की संज्ञा मानकर माला के मनके की संख्या : भी १०८ नियत की गयी है । अतः इस अभिप्रेत संख्या का रहस्य अन्वेषणीय है । सबसे पहले ब्रह्म शब्द को ही लीजिये। इसमें चार वर्ण है ब र ह तथा म । वर्णमाला दो भागों में विभक्त है-स्वर और व्यंजन । स्वर सोलह हैं, अतः प्रत्येक को १,२,३,४ से लेकर सोलह तक संख्या दीजिए । व्यंजन छत्तीस हैं, उन्हें छत्तीस तक संख्या दीजिए। इस प्रकार ब्रह्म का आदि अक्षर 'ब' व्यंजन है-'क' से 'ब' २३वां अक्षर, 'र', * एन १४, चेतकपुरी, ग्वालियर-४७४००६ बण्ड १५, अंक ४ (मार्च, ६०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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