Book Title: Tulsi Prajna 1990 03
Author(s): Nathmal Tatia
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 24
________________ अविश्वास की कशमकश एवं रहस्यमयता के कारण निर्विवाद रूप से किसी अन्तिम निर्णायक मत पर नहीं पहुंचा जा सका है। परामनोविज्ञान एवं पूर्वजन्म के स्मरण से सम्बद्ध अनेक घटनाओं के मिलते रहने से दर्शन जगत् की पुनर्जन्म सम्बन्धी धारणाओं को बल मिलता है। सन्दर्भ: १. (क) गीता, २११९,२०,२४,३०, बृहद्रव्यसंग्रह, गाथा-२,३,१४, वाक्यपदीय-११ (ख) कूटस्थ नित्या परमार्थसस्येति यावत् । --योगवार्तिक, पृ० १४ (ग) शङ्करकृत ऐतरेय भाष्य, २१, छादोग्योपनिषद्-८।२२ (घ) न्याय, वैशेषिक दर्शनों एवं कुछ मीमांसकों के अनुसार मोक्ष दशा में आत्मा चैतन्य रहित हो जाता है किन्तु जात्मतत्त्व नित्य है । ये चेतना को आत्मा का आगन्तुक गुण मानते हैं। २. वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गह्वाति नरोऽपराणि । तथाशरीराणि विहाय जीर्णान्यानि संयाति नवानि देही ॥-गीता, २१२२ ३. (क) पुण्यो वे पुण्येन कर्मणा भवति पापेनेति । ---बृहदारण्यकोपनिषद्, ३।२।१३ (ख) योनिमन्ये प्रपद्यन्ते शरीरत्वाय देहिनः। स्थाणुमन्येऽनुसंयन्ति यथा कर्म यथा श्रुतम् ॥--कठोपनिषद्, २०५७ (ग) तत्वार्थसूत्र, ६॥३,४,११-१४,८।१०-२६, भगवतीसूत्र-१२१५ ४. बृहदारण्यकोपनिषद्, ४।१०।५, छान्दोग्योपनिषद-५॥१०,४१४ ५. (क) यदा सत्त्वे प्रबुद्धे तु प्रलयं याति देहभृत् । .. तदोत्तमविदां लोकान्मलान्प्रतिपद्यते ॥ --गीता, १४।१४ (ख) रजसि प्रलयं गत्वा कर्मसंगिषु जायते । तदा प्रलीनस्तमसि मूढ़योनिषु जायते ।। -वही, १४१५ ६. वही, २११६,१८ ७. (क) न्यायसूत्र-१।१।१६,४।१।१०, वैशेषिक सूत्र-६।२।१५, योगसूत्र-२।१२,३६ (ख) दृष्टादृष्टजन्मनि वर्तमान भविष्यति। --योगवातिक, पृ० १६० ८. इत एकनवती कल्पे शक्त्या में पुरुषो हतः।। तेन कर्मविपाकेन पादे विद्धोऽस्मि भिक्षवः ।।---षड्दर्शनसमुच्चय टीका ६. (a) Buddhism, राईस डेविड्स, पृ० ६१, मिलिन्दप्रश्न-पृ० ६८ (b) When a person dies his character lives after him and by its force brings into existence a being who though possessing a different form is entirely influenced by it. And this process will go on until the person in question has completely overcome his thirst for being. ----Outlines of Indian Philosophy, Hiriyanna, P. 153 (शेषांश पृष्ठ २६ पर) तुलसी प्रज्ञा २० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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