Book Title: Tulsi Prajna 1975 07
Author(s): Mahavir Gelada
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 44
________________ शाकुन्तल में धीवर से अंगूठी प्राप्त होने पर राजा को शकुन्तला की याद आती है और यहीं शाप की समाप्ति होती है । पउमचरिय में प्रिय से बिछुड़ी चकवी को देखकर पवनंजय को अंजना की याद आती है । शाकन्तल में दुष्यन्त राक्षसों से युद्ध करने के लिए जाता है। पउमचरिय में पवनंजय राजा वरुण से युद्ध करने के लिए जाता है । शाकुन्तल में पति द्वारा परित्यक्ता शकुन्तला मारीच ऋषि के आश्रम में है । पउमचरिय में सास द्वारा परित्यक्त निवास करती शकुन्तला वन में किसी गुफा में निवास करती है वहां उसे मुनि अमितगति के दर्शन हुए । दोनों कथाओं में गर्भधारण के अनन्तर पुत्रोत्पत्ति के बाद नायक नायिका का मिलन होता है । इस प्रकार हम देखते हैं कि अभिज्ञान शाकुन्तल में महाभारत की मूलकथा में जो परिवर्तन किए गए हैं, उनमें से बहुत कुछ पउमचरिय की अंजना पवनंजय की कथा में मौलिक रूप में मिलते हैं । प्रश्न यह उपस्थित होता है कि दोनों ग्रन्थों में से किसका किस पर प्रभाव पड़ा। जहां तक कालिदास का सम्बन्ध है उनका काल ईस्त्री पूर्व प्रथमशती से लेकर ११ वीं शती तक खींचा जाता है । कुछ भी हो पूर्ववर्ती और परवर्ती उल्लेखों से यह सुनिश्चित है कि उन्हें चौथी सदी ईस्वी बाद का सिद्ध नहीं किया जा सकता । " पउमचरिय के उल्लेखानुसार विमलसूरि ने वीर नि. सं. ५३० या विक्रम सं. ६० के लगभग पउमचरियं की रचना की । २ ३८ Jain Education International यह उल्लेख होते हुए भी पउमचरिय की रचना के विषय में लोगों को विवाद है । डा. हर्मन जैकोबी उसकी भाषा और रचनाशैली पर से अनुमान करते हैं कि वह ईसा की तीसरी चौथी शताब्दी की रचना है। डा. कीथ डा. बुलनर ५ आदि इसे ईसा की तीसरी शताब्दी के लगभग या उसके बाद की रचना मानते हैं; क्योंकि उसमें दीनार शब्द का और ज्योतिष शास्त्र सम्बन्धी कुछ ग्रीक शब्दों का उपयोग किया गया है। दी. ब. केशवराव ध्रुव उसे और भी अर्वाचीन मानते हैं । इस ग्रन्थ के प्रत्येक उद्देस के अन्त में जो गाहिरणी शरम आदि छन्दों का उपयोग किया गया है वह उन की समझ में अर्वाचीन है । गीति में यमक और सगन्ति विमल शब्द का आना उनकी दृष्टि में अर्वाचीनता का द्योतक है डा. विन्टरनित्ज, डा. लायमन आदि विद्वान् वीर नि. ५३० को ही पउमचरिय का रचनाकाल मानते हैं ।" उद्योतनसूरि ने अपनी कुवलयमाला में जो वि. स. ८३५ में समाप्त हुई थी विमल के विमलांक और रविषेण के पद्मचरित की सराहना की है। इससे निश्चित रूप से इतना तो अवश्य ही सिद्ध होता है कि पउमचरिय वि. सं. ८३५ से पूर्व की रचना है, किन्तु उससे ठीक निर्णय पर नहीं पहुंचा जा सकता कि पउमचरिय की रचना को सही तिथि क्या है। कालिदास और विमलसूरि दोनों के समय का सही निर्धारण न पाने के कारण अभिज्ञान शाकुन्तल और पउमचरिय दोनों में से किस पर किसका प्रभाव है इसका निर्धारण नहीं किया जा सकता 1 जहां तक कथा का सम्बन्ध है अंजना, पव तुलसी प्रज्ञा-३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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