Book Title: Tulsi Prajna 1975 07
Author(s): Mahavir Gelada
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 115
________________ सम्मति प्रिय श्री गेलड़ाजी, । आपके सम्पादन में निकलने वाली तुलसी प्रज्ञा का दूसरा अंक प्राप्त हुआ । पहला भी आपने भेजा था पर उन दिनों मैं प्रवास में था । वह अक देखने को नहीं मिला । मेरे साथियों ने कुछ लापरवाही की जिससे मैं उसे देखने से वंचित रहा पर दूसरा अंक देखा, बहुत अच्छा लगा। यदि आप कृपा कर पहला अंक भी भिजवा सकें तो अनुग्रह होगा । मुझे ये अंक संग्रहणीय लगे । इसलिये कष्ट दे रहा हूं। आपका प्रयत्न सराहनीय है । जैन विद्या पर आचार्य तुलसी, उनके मुनियों तथा साध्वियों द्वारा साहित्य साधना व आगम अनुसंधान पर काफी अच्छा काम हो रहा है । उस शक्ति का अधिक अच्छा उपयोग करने में तुलसी प्रज्ञा साधन बनेगा और इसके द्वारा जैन विद्या के जिज्ञासुओं को अच्छी सामग्री प्रस्तुत होगी । आपका रिषभदास शंका प्रधान मंत्री, भारत जैन महामण्डल फोर्ट, बम्बई - ४००००१ 'मासिक शोध पत्रिका 'तुलसी प्रज्ञा' के दो अंक भी मिले। इसके कुछ उत्तराध्ययन के सम्बन्ध में जो लेख ही रुचिकर लगा और एक नई दृष्टि प्रदान इस दृष्टि से देखा है और न ही बौद्ध और वर्षों से ध्यान पद्धति में जरूर लेख पढ़े जो शोधपूर्ण एवं गहन अध्ययन वाले हैं । भदन्त आनंद कौसल्यायन का पढ़ा, बहुत की। अब तक उत्तराध्ययन सूत्र को हमने जैन संस्कृति को ढूंढ़ने का प्रयत्न किया है । गत कुछ बौद्ध धर्म से सीखने की कोशिश की जा रही है जिसका इस लेख को पढ़ने के बाद यही प्रतिक्रिया हुई कि इस प्रकार और खोजना आवश्यक है और विशद विचार-विमर्श भी वांछनीय है। इसी प्रकार विज्ञान पर भी बहुत सुन्दर लेख इसमें आये हैं । यह पत्रिका अपना कार्य इसी प्रकार चलाती रहे, यही मेरी शुभकामना है । जैन साहित्य से लोप हो गया । Jain Education International For Private & Personal Use Only भवदीय, रणजीत सिंह कूमट जिलाधीश, अजमेर www.jainelibrary.org

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