Book Title: Tulsi Prajna 1975 07
Author(s): Mahavir Gelada
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 47
________________ रात्रि भोजन किसी भी धर्म-ग्रन्थ में सम्मत नहीं है। किन्तु इसके पीछे सिद्धान्त क्या है, यह गवेषणा का विषय जन मुनि के लिए रात्रि - भोजन. परि हार का उल्लेख कई आगमों में हुआ भोजन कर लेने से बुद्धि नष्ट हो जाती है। मक्षिका मिश्रित भोजन हो जाने से वमन शुरू हो जाता है । यूका आदि से मिश्रित आहार जलोदर को पैदा कर देता है। कोलिक मिश्रित आहार से कुष्ट रोग उत्पन्न हो जाता है । बाल खाये जाने से स्वर भंग हो जाता है। कोई कटक, कीला या लकड़ी खाई जावे तो गले में अटक जाते हैं। भंवरें आदि जन्तु मुह में जाकर तालु को बींध डालते हैं।' ऊपर निर्दिष्ट कारणों से रात्रिभोजन-वर्जन का आत्म-साधना के साथ सीधा सम्बन्ध प्रतीत नहीं होता और उन दोषों से जो अस्वास्थ्य पैदा होता वह आत्म-साधना में बाधक बनता है। उसका प्रकाश द्वारा निवारण किया जा सकता है। आज के युग के प्रचुर साधनों के समक्ष उपर्युक्त दोषों को अवकाश ही नहीं __आवश्यक सूत्र में पांच महाव्रतों के अतिचारों की आलोचना के बाद छ? रात्रि-भोजन विरमण व्रत के अतिचार की आलोचना इस बात को सिद्ध करती है कि मुनि के लिए रात्रि भोजन अतिचार है। दशवकालिक सूत्र में मुनि के लिए पांच महाव्रतों की भांति ही रात्रि भोजन विरमण रूप छट्ठा व्रत परिपालनीय बताया गया है। आगमेतर ग्रन्थों में रात्रि भोजन वर्जन तथा रात्रि भोजन जनित दोषों के प्रायश्चित का विस्तृत वर्णन है । लेकिन वहां रात्रि भोजन के जितने कारण बताये गये हैं वे व्यावहारिक अधिक प्रतीत होते हैं। आत्म-हित से उनका कोई सीधा सम्बन्ध प्रतीत नहीं होता। निशीथचूणि में रात्रि भोजन से उत्पन्न दोषों का वर्णन करते हुए बताया गया है कि रात्रि में भोजन करने से छिपकली आदि जीव के अवयवों से मिश्रित भोजन खाया जा सकता है और उससे पेट में छिपकलियां ही छिपकलियां उत्पन्न हो जाती हैं । इसी तरह सर्प आदि विषैले जीवों की लाल, मल, मूत्र से मिश्रित भोजन खा लेने से नाना रोगों की उत्पत्ति हो जाती है। रात्रि भोजन दोष वर्णन में यह भी बताया गया है कि अन्धेरे में चींटी मिश्रित ओघ नियुक्ति में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा गया है कि जो दोष रात्रि भोजन में हैं वे ही 'संकट मुख' में हैं और वे ही अन्धकारपूर्ण दिन में __भोजन करने में हैं। इससे भी यही लगता है कि रात्रि भोजन में अगर कोई दोष माना गया है तो वह अन्धकार की दृष्टि से ही और इस दृष्टि से अगर कोई विधान करना था तो रात्रि भोजन वर्जन की अपेक्षा अंधकार भोजन वर्जन होना चाहिए था। जबकि अन्धकारपूर्ण दिन में पहले लाई हुई वस्तु भोग में ली जाती है। निशीथ भाष्य में रात्रि भोजन निष्पन्न दोषों का वर्णन करते हुए बताया गया है कि रात्रि भोजन से रात में पात्र धोने तुलसी प्रज्ञा-३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116