Book Title: Tulsi Prajna 1975 07
Author(s): Mahavir Gelada
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 106
________________ जैन विद्या परिषद् का षष्ठ अधिवेशन जयपुर-१०, ११ व १२ अक्टूबर को जैन विश्वभारती, लाडनू द्वारा आयोजित जैन विद्या परिषद् का त्रिदिवसीय छठा अधिवेशन सम्पन्न हुआ। अधिवेशन में देश की विभिन्न शिक्षण संस्थाओं से आए हुए चालीस विद्वानों ने भाग लिया। परिषद् के निदेशक डा० महावीर राज गेलड़ा ने स्वागत भाषण पढ़ा। अधिवेशन का उद्घाटन करते हुए जैन धर्म के मूर्धन्य दार्शनिक मुनि श्री नथमल जी ने कहा-जन धर्म मानता है कि वस्तु अनन्त पर्याय वाली है; अनन्त विरोधी युगल तत्वों से युक्त है । ये अनन्त पर्याय शोध के विषय हो सकते हैं । इसलिए विद्वानों का जो डर है कि कुछ ही वर्षों में शोध की सामग्री खत्म हो जायेगी, वह ठीक नहीं है। उन्होंने कहा-आज विद्वानों में ज्ञान के साथ अहिंसा का आकर्षण भी बढ़ रहा है । फलस्वरूप आज विद्वान सम्प्रदायातीत होकर अध्ययन एवं चिन्तन करते हैं। जैन विद्या परिषद् को जैन विद्या का मंच कहना ठीक नहीं होगा । मेरा अनुभव है कि जैन विद्या को समझने के लिए वैदिक साहित्य, बौद्ध साहित्य एवं आधुनिक विज्ञान का भी अध्ययन करना आवश्यक है। प्रमुख अतिथि राजस्थान विश्वविद्यालय के उपकुलपति डा. गोविन्दचन्द्र पाण्डे ने आज की शिक्षा पद्धति के बारे में विस्तृत चर्चा की। उन्होंने बताया कि राजस्थान युनिवर्सिटी के जैन विद्या केन्द्र का उपयोग अन्य विभागों के विद्यार्थी भी कर सकते हैं । इस त्रिदिवसीय अधिवेशन के अध्यक्ष श्री श्रीचन्दजी रामपुरिया ने श्रमण और ब्राह्मण संस्कृति के साहित्यों पर प्रकाश डाला। युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी ने कहा- विद्वान जब शोध के क्षेत्र में जाता है, उसके सामने बहुत कठिनाइयां आती हैं । कष्ट भी होता है। उपद्रव भी होते हैं । पर वे इन सब को पार करते रहेंगे तो नए-नए सत्य शोध कार्य में उद्घटित होते जाएंगे। ___ डा० उपाध्ये को श्रद्धांजलि इस परिषद् की अध्यक्षता के लिए श्री डा० ए० एन० उपाध्ये मनोनीत हुए थे। लेकिन वे एक हफ्ते पहले अस्वस्थ हुए और दि० ८ अक्टूबर को उनका देहान्त हुआ। जैन-विद्या के क्षेत्र में उन्होंने बहुत काम किया है। उपस्थित विद्वानों ने उनको श्रद्धांजलि अर्पित की। ___ इस परिषद् में भगवान महावीर के जीवन पर प्रकाश डालने वाले अनेक शोध निबन्ध पढ़े गए। इस वर्ष विद्वानों की गोष्ठी ग्रीन हाउस व्याख्यान स्थल में होने के १०० तुलसी प्रज्ञा -३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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