Book Title: Tulsi Prajna 1975 07
Author(s): Mahavir Gelada
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 105
________________ (२) यह कार्य जैन विश्व भारती के विदेश सम्पर्क विभाग के तत्वावधान में किया जाय । (३) इस कार्यक्रम को सुचारु रूप से चलाने के लिए विभिन्न उप समितियों का गठन किया जाय । ( ४ ) इस कार्यक्रम को तीन क्रमिक सोपानों में बांटा जाय प्रथम सोपान में विभिन्न देशों के अन्तर्राष्ट्रीय महत्व के व्यक्तियों की सूचियां तैयार की जाएं तथा प्रारम्भिक साहित्य का निर्मारण विदेशी भाषाओं में किया जाय । दूसरे सोपान में पत्र-व्यवहार के माध्यम से उनसे सम्पर्क किया जाय। उन्हें साहित्य भेजा जाय तथा उनकी प्रतिक्रियाएं जानी जाएं । तीसरे सोपान में सम्भवतः १९७६ के मार्च-अप्रैल-मई में एक प्रतिनिधिमण्डल द्वारा विभिन्न देशों की यात्रा की जाय तथा व्यक्तिशः सम्पर्क के द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन के लिए सशक्त वातावरण बनाया जाय । इन तीन सोपानों के बाद आगामी वर्ष के अन्त में नई दिल्ली में उक्त सम्मेलन का आयोजन किया जाय । (५) इस समग्र कार्य को सम्पन्न करने के लिए आवश्यक अर्थ संग्रह की भी एक योजना बनाई गई है । लगभग दस लाख के व्यय का अनुमान किया गया है। चालीस व्यक्तियों द्वारा २५-२५ हजार की जिम्मेवारी लिए जाने पर उक्त राशि प्राप्त की जा सकती है । जिम्मेवारी लेने वाले व्यक्ति चाहें तो केवल स्वयं ही और चाहें तो अन्य अपने सम्पर्क के व्यक्तियों से संग्रहीत कर उक्त राशि प्रदान कर सकते हैं । प्रसन्नता और उत्साह की बात है कि इस कार्यक्रम को बढ़ाने में प्रारम्भ से ही लगने वाले श्री जेठमल जी फूलफगर ( खाटू निवासी ), श्री खुशीलाल जी दक ( ब्यावर निवासी ) तथा श्री संचियालाल जी डागा ( बीदासरं निवासी ) ने स्वयं से ही अर्थ-प्रदान का कार्य प्रारम्भ किया है तथा प्रत्येक ने २५-२५ हजार की घोषणा की है । उक्त तीनों ही सज्जन बम्बई में रहते हैं। जयपुर निवासी श्री निर्मल कुमार सुराणा ( सुपुत्र : श्री मन्नालाल जी सुराणा ), श्री निर्मलकुमार दूगड़ ( सुपुत्र श्री धनराजजी दूगड़ ) आदि युवकों ने भी अपने सहयोग का आश्वासन दिया है । प्रथम सोपान का कार्य ३० अक्टू. ७५ तक पूर्ण हो जाने की सम्भावना है । श्री सुमेर जैन एवं उनके साथी सतत् रूप से कार्य में संलग्न हैं और आशा है कि सारे कार्यक्रम जैसे निर्धारित किए गए हैं, वैसे ही पूर्ण होते जायेंगे लोगों से - और विशेषतः युवकों से - कि वे आचार्य प्रवर के लिए सम्पूर्ण रूप से सक्रिय होकर अपना सहयोग करेंगे । । अपेक्षा है समाज के समर्थ स्वप्न को साकार करने के - महेन्द्र जैन तुलसी प्रज्ञा-३ Jain Education International For Private & Personal Use Only ६६ www.jainelibrary.org

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