Book Title: Tulsi Prajna 1975 07
Author(s): Mahavir Gelada
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 49
________________ बाहर जाकर भिक्षा लाने का कोई प्रश्न हो नहीं उठता फिर भी उत्तर गुण के रूप में श्रावक के लिए रात्रि भोजन वर्जन का विधान है, उसका क्या अर्थ होगा ? रात में भूमि पर रात्रिचर घूमते रहते हैं । अत: रात्रि में खाना खाने वाले को मंत्र आदि से छल लेते हैं । यह जो कथन है, मात्र नासमझ व्यक्तियों से रात्रि भोजन छुड़ाने के लिए भय दिखाना है । हर युग के धर्म ग्रन्थों में कुछ ऐसे किस्से गढ़े हुए मिलते हैं जो लोगों को अहितकर या पापकारी प्रवृत्ति छुड़ाने हेतु, धर्म युक्त आचरण पनपाने के लिए भय और प्रलोभन का सहारा लेते हैं। वरना यह बात सही होती तो आज भी कितने लोग रात्रि भोजन नहीं करते उनके कोई रात्रिचर क्यों नहीं छलते । वैदिक ग्रन्थों में रात्रि भोजन के परलोक भावी दुष्परिणाम का उल्लेख करते हुए बताया है " वहां अधिकतर भय और प्रलोभन ही झलकता है ।" रात्रि भोजन वर्जन का सही रहस्य क्या है ? यह समझ में नहीं आता । वहां बताया है कि "जो रात्रि भोजन करता है वह अगले जन्म में उल्लू, कौआ, बिल्ली, गिद्ध, शम्बर, सूअर, सर्प, बिच्छू, गोधा इत्यादि कुत्सित योनि में जाता है ।"२ वहीं सूर्यास्त से पहले भोजन करने वाला किस पुण्य का उपार्जन करता है, उसका भी स्पष्ट उल्लेख है । 'एक बार भोजन करने वाला अग्निहोत्र यज्ञ जितना फल पाता है और सूर्यास्त से पहले भोजन करता है वह तीर्थ यात्रा के फल को प्राप्त होता है ।' ३ जब घर में किसी स्वजन की मौत हो जाती है तो कई दिन सूतक माना जाता है फिर भी दिवानाथ के अस्त होने तुलसी प्रज्ञा-३ Jain Education International पर भोजन करना कहां तक उचित होगा । वैदिक और बौद्ध साहित्य की भांति ही जैन साहित्य रात्रि भोजन के निषेध में अग्रणी है । दशवैकालिक सूत्र में रात्रिभोजन को अनाचार बताया गया है। वहीं आगे कहा गया है कि सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले साधुमन से भी आहार आदि की कामना न करें । ६ मुनि रात को चार प्रकार के आहार का वर्जन करे, इतना ही नहीं, सन्निधि और संग्रह भी न करे । ७ दशकालिक में जो रात्रि भोजन का निषेध है उसके पीछे कारण बहिर्गमन जनित हिंसा को लिया गया है तभी तो कहा है कि उदकार्द्र और बीज संसक्त भूमि पर दिन में भी चलना वर्जित है फिर रात को मुनि कैसे चले ? अतः उन सूक्ष्म जीवों की हिंसा से बचने की दृष्टि से मुनि रात्रि भोजन का परिहार करे । निशीथ सूत्र में रात्रि भोजन के चार विकल्प हैं और चारों के ही सेवन पर प्रायश्चित्त का विधान है । १. दिन में लिया दिन में भोगा । २. दिन में लिया रात में भोगा । ३. रात में लिया दिन में भोगा । ४. रात में लिया रात में भोगा । मुनि अकारण इन चारों ही विकल्पों का सेवन न करें । कारण में करे तो पहले की भांति दूसरा विकल्प भी शुद्ध है । मार्ग में जहां आहार आदि मिलने की संभावना न हो गीतार्थ साधु नवदीक्षित साधुओं को बिना जताए जाते हुए सथवाड़े से रात को आहार ले ले । सूर्योदय के बाद उसको भोग ले, वह शुद्ध है । यदि सूर्योदय के बाद आहार मिलने की संभावना हो फिर भी सूर्योदय से पहले ले तो वह अशुद्ध है और प्रायश्चित्त का भागी है। फोड़े पर For Private & Personal Use Only ४३ www.jainelibrary.org

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