Book Title: Traivarnikachar
Author(s): Pannalal Soni
Publisher: Jain Sahitya Prakashak Samiti

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Page 4
________________ हमारे खुदके छपाये हुए जैन ग्रन्थ । पाण्डवपुराण-श्रीशुभचन्द्राचार्यकृत संस्कृत ग्रन्थका पंडित घनश्यामदासजीकृत नवीन हिन्दी अनुवाद । इसमें कौरव और पांडवोंका संसार-प्रसिद्ध प्राचीन इतिहास है । पाण्डवोंके देश-निकाले, द्रौपदीके चीरहरण, कौरव और पांडवोंके प्रसिद्ध युद्ध, दुःशासनकी कूटनीति आदि विषयोंका इसमें विस्तृत वर्णन है । इसे ही 'जैन महाभारत' कहते हैं। मूल्य कपड़ेकी सुन्दर पक्की जिल्दयुक्त ५॥) रत्नकरंडश्रावकाचार-पं० सदासुखजीकृत भाषाटीका-सहित । यह श्रावकाचार सम्बन्धी सबसे ज्यादा बड़ा और प्रसिद्ध ग्रन्थ है । इसमें विस्तारके साथ श्रावकाचारका वर्णन है । प्रसंगानुसार इसमें बारह-भावना, दशलक्षणधर्म, षोड़शकारण-भावना आदिका भी खूब विस्तारके साथ और सरल वर्णन है । इसकी बहुत ही कम प्रतियां शिलक रही हैं । मूल्य ६) त्रिलोकसार-स्वर्गीय पं० टोडरमल्लजीकृत भाषा-बचनिका-सहित । यह ग्रन्थ बड़े महत्वका है । जैनसमाजमें जैसा 'गोम्मटसार ' सिद्धान्त ग्रंथका आदर है वैसा ही इस महान ग्रंथका भी आदर है । इस महान ग्रंथमें जैनधर्मके अनुसार त्रिलोककी रचनाका खुलासा और बड़े विस्तारके साथ वर्णन किया गया है। इसका स्वाध्याय करनेवाले सहजहीमें इन बातोंको जान सकेंगे कि जैनधर्मके अनुसार पृथ्वी घूमती है या स्थिर है; सूर्य, चन्द्र तथा नक्षत्र घूमते हैं या स्थिर हैं; उनकी गति किस तरह होती है, ग्रहण क्यों पड़ता है, स्वर्ग-नरक क्या है-उनकी रचना कैसी है, आदि । सुन्दर कपड़ेकी जिल्द बंधी हुई । मूल्य ५॥) रु० कियाकोश-स्वर्गीय पं० दौलतरामजीकृत । इस ग्रंथमें विस्तारके साथ इन बातोंका वर्णन किया गया है कि हमें खान-पान कैसा रखना चाहिए, भले या बुरे खान-पानका मन पर क्या प्रभाव पड़ता है, कौन वस्तु कब तक खाने योग्य रहती है और कब वह अभक्ष्य हो जाती है, अपने गृहोंकी चीज-वस्तुओंको हमें किस सिलसिलेसे उठानी-धरनी चाहिए, जिससे किसी जीवको कष्ट न हो; श्रावकोंको व्रत वगैरहका किस प्रकार पालन करना चाहिए आदि । इस ग्रंथको गृहस्थधर्मका 'दर्पण' कहना चाहिए । कपड़ेकी सुन्दर जिल्द-युक्तका मूल्य अढाई रुपया। पुण्यासव-इसमें मनोरंजक और धार्मिक भावोंसे परिपूर्ण कोई ५६ छोटी मोटी कथायें हैं । जिन जिन भव्य पुरुषोंने जिन भगवानकी पूजा, पंचनमस्कार मंत्रकी आराधना; शीलधर्मका पालन, उपवास, दान आदि द्वारा फल प्राप्त कर स्वर्गधाम प्राप्त किया है उन्हींकी कथायें इसमें लिखी गई हैं । खले पत्र । मूल्य चार रुपया। भक्तामरकथा-मंत्र-यंत्र-सहित । ब्रह्मचारी रायमल्ल रचित संस्कृत भक्तामरकथाके आधार पर बड़ी सीधी-साधी हिन्दी भाषामें स्व. पंडित उदयलालजी काशलीवाल द्वारा लिखित । इसमें पहले

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