Book Title: Terah Dwip Puja Vidhan
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 5
________________ [4] यह बृहत् पूजा न कर सकनेवाले भी इस विधानका स्वाध्याय / करके श्री तेरहद्वीपोंका पूर्ण परिचय प्राप्त कर सकते है। श्री तेरहद्वीप पूजन विधानको विधि व उसके मांडनेका रूप इस पाठमें पृ. 7 से 13 तक कविश्री द्वारा ही दर्शाया गया है। अतः उसे अलग लिखनेका आवश्यकता नहीं है। तो भी विधानके मांडनेका सामान्य नकशा भी हम इस पाठके साथ प्रकट कर रहें हैं, जो चांवलका मांडना बतानेमें सहायक होगा। यदि चांवलका मांडना न बन सके तो इस प्रकारका कपड़ेका रंग बिरंगी हस्तलिखित मांडना 1 // // 1 // / गजका याने 545 फूटका 750) रुपयेमें हमारे यहांसे मिलता है जो मंगा लेना चाहिये। ___ आशा है इस अष्टमी आवृत्तिका भी शीघ्र ही प्रचार हो जायेगा। सुरत वीर सं. 2526 माघ सुदी पंचमी ता. 10-2-2000 निवेदक : शैलेश डाह्याभाई कापडिया, - प्रकाशक

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