Book Title: Terah Dwip Puja Vidhan Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia Publisher: Digambar Jain Pustakalay View full book textPage 3
________________ प्रस्तावना और कवि-परिचय करीब 80 वर्ष पहले एक ऐसा समय था जब कि जैन ग्रन्थ हस्तलिखित थे, लेकिन असातनाके डरसे उसे छपानेकी कोई हिम्मत नहीं करता था, लेकिन समय बदल जानेसे जैन ग्रन्थ छपनेकी आवश्यकता आ पडी थी और विरोध बहुत था, तो भी ऐसे निकट समयमें स्व. लाला जैनीलाल जैन देवबन्ध निवासीने बडी हिम्मत करके व प्रबल विरोध सहन करके कई ग्रन्थ छपाये, उनमेंसे श्री तेरहद्वीप पूजन पाठ विधान मुख्य था, जो आपने करीब सन् 1906 में मुरादाबादके लक्ष्मीनारायण प्रेसमें छपाया था, जो बिक जाने पर हमने इसकी दूसरी आवृत्ति वीर सं. 2469 में तीसरी आवृत्ति वीर सं. 2481 में चौथी आवृत्ति वीर सं. 2490 में व पांचमी आवृत्ति 2498 में व षष्ठी आवृत्ति 2506 में, सातमी आवृत्ति 2515 में प्रकट की थी वह भी बिक जानेसे यह अष्टमी आवृत्ति प्रकट की जाती है। कवि परिचय इस तेरहद्वीप पूजन पाठके रचयिता भेलुपूर, काशी निवासी कवि श्रीलालजी या लालजीत या 'लाल' थे। जो १८वीं शताब्दीमें हो गये है। आपका विशेष परिचय तो इस पाठमें नहीं मिलता, लेकिन आपने इसके पहले श्री समवसरण पूजन विधान भी रचा है, जिसके अन्तमें आपका कुछ परिचय मिलता है जिससे जाना जाता है कि - सवाईजयपुरमें पं. टोडरमलजी नामक एक खण्डेलवाल श्रावक रहते थे, जिन्होंने श्री त्रिलोकसार ग्रंथराजकी देश भाषामें वचनिका लिखी थी। उसमें समवसरणका बहुत सुन्दर वर्णनPage Navigation
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