Book Title: Swar Bhasha Ke Swaro Me
Author(s): Chandanmuni, Mohanlalmuni
Publisher: Pukhraj Khemraj Aacha

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Page 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ४ ] आचार्यों की स्तुति रूप आठ गीतिकाए वनाई । आज से लगभग ३० वर्ष पहले का यह हमारा उपक्रम था। बाद में संस्कृत काव्यों का क्षेत्र अधिक विस्तृत होता गया। पञ्चतीर्थी मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि वह मेरी बाल्यकालिक लयुकृति 'पञ्चतीर्थी' के नाम से प्रसिद्ध हुई और उसका अच्छा उपयोग हुआ । अनेकों ने कण्ठस्थ की । विशेष रूप से यह प्रसार सरदार शहर निवासी सेठ श्रीमान्, सुमेरमल जी दूगड़ के द्वारा हुआ। उन्होंने संस्कृत की इन गीतिकाओं को सुमधुर लय से गाया तथा अपने पुत्र कन्हैयालाल जी एवं भंवरलाल जी से कण्ठस्थ करवाई। उसी के परिणाम स्वरूप अनेक साधु-साध्वियों ने भी उन्हें कण्ठस्थ की। वैसे ही 'गीतिका त्रयोदशी' वि० सं० २००६ में सुरेन्द्रनगर [ सौराष्ट्रान्तर्गत ] में बनाई । उनमें से कतिपय गीतिकाए काफी श्रवणाई बनीं। ये उपयुक्त संस्कृत गीतिकाए यद्यपि पहले मुद्रित हो चुकी थीं, किन्तु भापानुवाद न होने के कारण सर्व-साधारण के लिए विशेष उपयोगी नहीं बनी, फिर भी विद्वत् जनों के अपनाने के कारण इसकी मुद्रित प्रतियाँ प्रायः शेष हो चुकी हैं । पुनः सानुवाद के रूप में प्रस्तुत ये गीतिकाए विशेष रूप से उपयोगी बन सकेंगी और प्रत्येक व्यक्ति इन भक्तिमय एवं आध्यात्मिक गीतिकाओं का रसास्वादन ले सकेंगा । ऐसी आशा हैवि० सं० २००६, चन्दन मुनि भाद्रपद जन्माष्टमी चिकमगलूर ( मैसूर ) For Private And Personal Use Only

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