Book Title: Swar Bhasha Ke Swaro Me
Author(s): Chandanmuni, Mohanlalmuni
Publisher: Pukhraj Khemraj Aacha

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | गोतिका भव्य | इस दुःख से परिपूर्ण संसार में मनुष्य जीवन को पाकर व्यर्थ मत खोना । प्रत्येक पल शुभ कार्य में बिता । हे भाई ! तू कुछ शुभ कार्य कर, ऐसा कौन प्राणी है, जो जन्म के बाद मरता नहीं ? १. यह संसार जन्म, जरा, मृत्यु आदि पीड़ाओं से पीड़ित है। यहाँ तेरा कर्तव्य क्या है ? और तू क्या कर रहा है ? यह सोच ! तू क्यों न अपने हित पर ध्यान देता है ? २. कुछ प्राणी अभी काल के मुह में] जा रहे हैं, कुछ पहले ही जा चुके हैं और कुछ जाने वाले हैं। वस्तुतः गमनागमन-संकुल इस पथ में समूचा संसार चलता-सा ही दृष्टिगत हो रहा है। ३. तेरी माता कौन है ? तेरा पिता कौन है ? और तेरे स्वजन-सम्बन्धी कौन हैं ? विधियोग से सभी यहाँ एकत्रित हुए हैं। बोल, इनमें से तेरे साथ जाने वाले कौन है ? ४. संसार की विचित्रता स्पष्ट है, फिर भी तेरी दृष्टि में नहीं आती, अफमोम है ! मोहरूपी मदिरा का नशा तुझ अपना भान नहीं होने देता। ५. जिम शभ कार्य को तू कल करना चाहता है उसे आज ही कर ले ! अभी क्यों न ही कर लेता ? घड़ी भर के बाद तू जीवित रहेगा या नहीं ? यह भी नहीं कहा जा सकता। ६. नदी का पानी वेग से बह रहा है। यदि तुझ में गोता लगाने की कुशलता है तो इसमें एक डुबकी लगा, तेरे समस्त पापमल दूर हो जायेंगे वस्तुतः तू दिव्य-स्वरूप वाला है। ७. 'चन्दन' ! तेरी आत्मा का स्वरूप नित्य सुखदायी चिदानन्दमय है, जो तीन काल में कभी मलिन नहीं होता । अन्तमुखी बनकर उसका तू दर्शन कर । For Private And Personal Use Only

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