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गीतिका
रे मनुष्य ! तू निरर्थक इधर-उधर भ्रमण मत कर, एक पार्श्वनाथ भगवान
को उपासना कर ।
१. तू वामा महारानी के सुपुत्र पार्श्वनाथ की आराधना कर । जिन्होंने मान को परास्त कर, उत्कृष्ट महिमा अर्जित कर ली है तथा मुक्ति रूपी स्त्री के प्राणप्रिय बन गए हैं ।
२.
अपने घनघाती कर्मों का मूलोच्छेद कर, केवल ज्ञान रूपी कमला को पाकर, लोक और अलोक को 'करामलकवत्' अति स्पष्ट रूप से देखने लगे ।
३. खेद है कि कमठ तापस ने अपनी अहंमन्यता के वश उच्छङ्खल होकर आप पर प्रलयकाल जैसी मूसलाधार वृष्टि की ।
४. आश्चर्य है ! फिर भी आपकी भृकुटि पर किंचित् भी कोप का आरोपण नहीं हुआ | यह है क्षमाशीलता और ज्ञान लहरों का चमत्कारी प्रभाव !
५. मानव ! तू भी धरणेन्द्र द्वारा शिरोधारित पार्श्वनाथ भगवान का स्मरण कर । 'चन्दन मुनि' इसी माध्यम से भव-समुद्र का पार प्राप्त करता है ।
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