Book Title: Swar Bhasha Ke Swaro Me
Author(s): Chandanmuni, Mohanlalmuni
Publisher: Pukhraj Khemraj Aacha
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४ पार्श्वजिन - स्तुतिः
( ' म्हे छाँ लाडूमल' इति रागेण गीयते )
मोघं भ्रम मा मा, सेवय पार्श्वजिनेश्वरमेकम् । ध्रुव ॥ पार्श्व जिनेन्द्र सेवय-सेवय, प्रथितमहामहिमानम् । कमनीयं मुक्त्यङ्गनया, वामापत्यं गतमानम् ॥ १ ॥ तद्घनधात्यं कर्म निहत्या - सादितकेवलकमलम् । कराऽऽमलकवल्लोकालोकं, लोकमानमति विमलम् ॥ २ ॥ यदुपरि भृशमुल्लुण्ठतया, प्रबलीकृतसौवहन | संहाराब्दसमा जलवृष्टिः, क्षिप्ता बत ! कमठेन ॥ ३ ॥ चित्रं तदपि न कोपारोपणमभवद् यद् भ्रूभङ्ग । अहह ! तितिक्षा तदनुपमेया, चञ्चज्ज्ञानतरङ्ग े ॥ ४ ॥ तं धरणेन्द्र - शिरोधार्यं भगवन्तं स्मारं स्मारम् । चन्दनमुनिरतिहृष्टमना, लघु लभते भवजलपारम् ॥ ५ ॥
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