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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४ गीतिका रे मनुष्य ! तू निरर्थक इधर-उधर भ्रमण मत कर, एक पार्श्वनाथ भगवान को उपासना कर । १. तू वामा महारानी के सुपुत्र पार्श्वनाथ की आराधना कर । जिन्होंने मान को परास्त कर, उत्कृष्ट महिमा अर्जित कर ली है तथा मुक्ति रूपी स्त्री के प्राणप्रिय बन गए हैं । २. अपने घनघाती कर्मों का मूलोच्छेद कर, केवल ज्ञान रूपी कमला को पाकर, लोक और अलोक को 'करामलकवत्' अति स्पष्ट रूप से देखने लगे । ३. खेद है कि कमठ तापस ने अपनी अहंमन्यता के वश उच्छङ्खल होकर आप पर प्रलयकाल जैसी मूसलाधार वृष्टि की । ४. आश्चर्य है ! फिर भी आपकी भृकुटि पर किंचित् भी कोप का आरोपण नहीं हुआ | यह है क्षमाशीलता और ज्ञान लहरों का चमत्कारी प्रभाव ! ५. मानव ! तू भी धरणेन्द्र द्वारा शिरोधारित पार्श्वनाथ भगवान का स्मरण कर । 'चन्दन मुनि' इसी माध्यम से भव-समुद्र का पार प्राप्त करता है । For Private And Personal Use Only ३७
SR No.020787
Book TitleSwar Bhasha Ke Swaro Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmuni, Mohanlalmuni
PublisherPukhraj Khemraj Aacha
Publication Year1970
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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