Book Title: Swar Bhasha Ke Swaro Me
Author(s): Chandanmuni, Mohanlalmuni
Publisher: Pukhraj Khemraj Aacha

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Page 28
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैसे अंजली में स्थित पानी प्रतिक्षण कम होता जाता है, वैसे हो तेरा आयु निरन्तर क्षीण होता चला जा रहा है। "चला गया, चला गया तेरा ही जीवन व्यर्थ ही चला गया। फिर भो मूढ़ ! तुझे तो पता तक नहीं चला है।" १. उम्र प्रतिदिन बढ़ रही है, ऐसा तु हमेशा गोचता रहता है । किन्तु वस्तुतः वह प्रतिक्षण क्षीण हो रही है, ऐसी तेरी धारणा नहीं है। इसीलिए तू हर साल साल-गिरह मनाता है, किन्तु ज्ञानी कहते हैं कि यह उत्सव का दिन नहीं, बल्कि शोक का दिन है, क्योंकि इसमें तेरा एक आय ष्य-भाग क्षीण हो चुका है। २. तूने ज्ञान की आंखें मूद रक्खी है अतः मदान्ध बनकर धार्मिक कार्यों में तू शिथिलता कर रहा है। यह खेद का विषय है कि महर्षियों के आगे भी तेरा मस्तक नहीं झुकता । ३. 'भाई धर्म कर' यदि ऐसी किसी ने प्रेरणा की तो तूने वापिस कहा "तेरा कहना व्यर्थ है, क्योंकि मैं कभी पाप करता ही नहीं हूँ। हाँ तू ही धर्म कर, क्योंकि तूने ही पाप-पथ का अनुसरण किया है।" . यहाँ तुने पूर्व-संगृहीत सामग्री का ही उपयोग किया, किन्तु अगले जन्म के लिए किंचित् भी शुभ संचय नहीं किया। 'चन्दन मुनि' के इस वचनामृत का किमी विवेकी ने ही पान किया है। For Private And Personal Use Only

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