Book Title: Swar Bhasha Ke Swaro Me
Author(s): Chandanmuni, Mohanlalmuni
Publisher: Pukhraj Khemraj Aacha

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Page 34
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२- | गीतिका आत्मन् ! बाह्य क्रियाकाण्डों का तूने अनेक बार आचरण किया, परन्तु यदि आन्तरिक शून्यता रही तो सिद्धि कैसे सम्भव हो सकती है ? बाह्य आचरण वहुत किए, परन्तु खेद है ! सिद्धि नहीं हुई : १. संसार छोड़, बहुत बार मुनि वेष धारण किया, अनेक कष्टों को सहन किया। फिर भी यदि अन्तर्वाला प्रज्वलित रही तो सिद्धि नहीं हुई। २. किसी भी व्यक्ति को निन्दा-विकथा आदि नहीं करनी चाहिए। इसमें भी मुनियों के लिए ये विशेप वर्जनीय हैं । यदि मुनि होकर भी ऐसा आचरण किया अर्थात् निन्दा, विकथा आदि करते रहे तो सिद्धि नहीं हुई । ३. किसी के साथ किया गया संस्तव (रागभाव) मुनियों के लिए दोष का ___ कारण बनता है। यदि आचरण में वीतरागता न रही तो सिद्धि नहीं हुई। ४. अपरिग्रह व्रत को स्वीकार करता हुआ मुनि किसी भी पदार्थ के प्रति मूर्छा नहीं करता, परन्तु यदि वहां भी क्षेत्र-गाव-पात्रादिकों में मूर्छा भाव से बना रहा तो सिद्धि नहीं हुई । ५. 'तृष्णा दुखों का मूल है' ऐसा परिषद में अनेक बार उल्लेख किया, परन्तु यदि यश, कीर्ति आदि की कामना मताती रही तो सिद्धि नहीं हुई।। ६. 'चन्दन मनि' भगवान महावीर से प्रार्थना करता है कि मेरी कथनी-करणी एक समान हो । परन्तु यदि वह कथन वचन का विषय ही रहा तो सिद्धि नहीं हुई। २५ For Private And Personal Use Only

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