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गीतिका
सुन्दर वर्ण, रूप, वस्त्र और अलंकारों से मनुष्य प्रियता प्राप्त नहीं कर सकता । किन्तु सुगुणों से मण्डित होने पर ही प्रिय प्रतीत होता है 1
जिसका अन्तःकरण सरलता से पवित्र है, ऐसा निश्छलवादी, निर्वैर हृदय वाला पुरुष सभी को अत्यन्त प्रिय लगता है ।
१. जो किसी के पूछने पर सरल एवं स्पष्ट बोलता है ऐसा परहित चिन्तन में लीन, विरक्त पुरुष, सभी को अत्यन्त प्रिय लगता है ।
२. जो सभी जगह मैत्री का समादर करता है, पर कहीं भी वैरभाव का विस्तार नहीं करता । शत्रुता करने वालों को भी मित्र की दृष्टि से देखता है वह सभी को अत्यन्त प्रिय लगता है |
३. बाह्याडम्बर से निवृत्त अपने को अल्पज्ञ मानने वाला निरन्तर ज्ञानप्राप्ति के लिए उत्सुक पुरुष सभी को अत्यन्त प्रिय लगता है ।
४. पर - दोष देखने में जो अपनी आंखों का प्रयोग नहीं करता और परनिन्दा श्रवण में वधिर-सा बन जाता है, केवल सद्गुण गणना में ही जिसकी मति संलग्न है, ऐसा पुरुष, सभी को अत्यन्त प्रिय लगता है ।
५. वह विमल एवं दयालु हृदय वाला मधु-सा मधुर वचन बोलता है । परस्त्री को माता तुल्य मानने वाला पुरुष, सभी को अत्यन्त प्रिय लगता है । ६. जो दुख में दीनता नहीं लाता एवं सुख में फूलता नहीं, ऐसा तात्विक, सात्विक वृत्ति वाला समदर्शी पुरुष सभी को अत्यन्त प्रिय लगता है । ७. जगत की लीला को मिथ्या मानता हुआ जो यहाँ किसी वस्तु पर आसक्ति नहीं करता, केवल कर्तव्यरूप व्यवहार का निर्वाह करता है वह पुरुष, सभी को अत्यन्त प्रिय लगता है ।
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