Book Title: Swar Bhasha Ke Swaro Me
Author(s): Chandanmuni, Mohanlalmuni
Publisher: Pukhraj Khemraj Aacha

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Page 36
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३ गीतिका सुन्दर वर्ण, रूप, वस्त्र और अलंकारों से मनुष्य प्रियता प्राप्त नहीं कर सकता । किन्तु सुगुणों से मण्डित होने पर ही प्रिय प्रतीत होता है 1 जिसका अन्तःकरण सरलता से पवित्र है, ऐसा निश्छलवादी, निर्वैर हृदय वाला पुरुष सभी को अत्यन्त प्रिय लगता है । १. जो किसी के पूछने पर सरल एवं स्पष्ट बोलता है ऐसा परहित चिन्तन में लीन, विरक्त पुरुष, सभी को अत्यन्त प्रिय लगता है । २. जो सभी जगह मैत्री का समादर करता है, पर कहीं भी वैरभाव का विस्तार नहीं करता । शत्रुता करने वालों को भी मित्र की दृष्टि से देखता है वह सभी को अत्यन्त प्रिय लगता है | ३. बाह्याडम्बर से निवृत्त अपने को अल्पज्ञ मानने वाला निरन्तर ज्ञानप्राप्ति के लिए उत्सुक पुरुष सभी को अत्यन्त प्रिय लगता है । ४. पर - दोष देखने में जो अपनी आंखों का प्रयोग नहीं करता और परनिन्दा श्रवण में वधिर-सा बन जाता है, केवल सद्गुण गणना में ही जिसकी मति संलग्न है, ऐसा पुरुष, सभी को अत्यन्त प्रिय लगता है । ५. वह विमल एवं दयालु हृदय वाला मधु-सा मधुर वचन बोलता है । परस्त्री को माता तुल्य मानने वाला पुरुष, सभी को अत्यन्त प्रिय लगता है । ६. जो दुख में दीनता नहीं लाता एवं सुख में फूलता नहीं, ऐसा तात्विक, सात्विक वृत्ति वाला समदर्शी पुरुष सभी को अत्यन्त प्रिय लगता है । ७. जगत की लीला को मिथ्या मानता हुआ जो यहाँ किसी वस्तु पर आसक्ति नहीं करता, केवल कर्तव्यरूप व्यवहार का निर्वाह करता है वह पुरुष, सभी को अत्यन्त प्रिय लगता है । For Private And Personal Use Only २७

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