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गीतिका
मेरे प्यारे बान्धव ! तू हमेशा प्रातःकाल श्री शान्तिनाथ भगवान का स्थिरता पूर्वक स्मरण कर ।
१. अचिरा रानी के सुपुत्र, आनन्द प्रदान करने वाले, सुवर्ण वर्ण के शरीर
द्वारा चर्दिन में स्वर्णिम आभा फैलाने वाले, रत्ननिधान की ज्यों उन शान्तिनाथ भगवान को अपने मन में धारण करके इस मनुष्य जन्म को
सफल बना। २. शान्तिनाथ भगवान का नाम स्मरण करने मात्र से ही क्षय, कुष्ठ, आदि
मृत्यु की आशंका पैदा करने वाले भयंकर रोग, शीघ्र ही नष्ट हो
जाते हैं। ३. जिस व्यक्ति के पास भगवान के नाम का अपूर्व बल है, उसके लिए भूत
पिशाचजन्य कष्ट, चोर और अग्नि का भय तथा सर्प दंश आदि का
दुष्प्रभाव पूर्णतया शान्त हो जाते हैं। ४. बाह्य शारीरिक कष्टों के उपशमन होने में क्या आश्चर्य है ? क्योंकि इसके
लिए तो अनेक भौतिक साधन भी विद्यमान हैं। परन्तु आश्चर्य तो यह है कि भगवान का नाम स्मरण जो भी कोई करता है उसके अन्तर पाप मल
भी दूर हो जाते हैं। २५. यदि तू 'चन्दन मुनि' का कथन सही मानता है तो फिर दूसरों के सामने
याचना करने की क्या आवश्यकता है ? तू तो शान्तिनाथ के गुणगान कर और अपने हृदय कमल को पवित्र बना ।
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